Saturday, January 2, 2010

अभिव्यक्ति की क्षमताओं पर एक उपहास


सर्द सुबह की और भारी रजाई से दबा मैं
सोच में लेटा था की चाय की खोज किसने की?
नोबेल पुरस्कार उसे मिला या नहीं ?

बिस्तर पे लेटे दो चार शेर उसकी तारीफ में मार भी दिए
पर चाय भी कोई ठण्ड थोड़ी जो बिना मगाए द्वार तक आजाये
यथार्थ का बोध मन को था सो झिझक कर उठ गया
मुह धोने के लिए नल तक सकुचाता कांपते पहोच तो गया हूँ
पर काफी समय से एक उलझन में मूरत बन खड़ा हूँ

जो नल खोला तो कुरुक्षेत्र के मध्य अभिमन्यु सा मैं असहाय रह जाऊँगा
हॉस्टल का गीज़र किसी महान योद्धा के वस्त्र सा टंगा
किसी अजूबा घर में रखा मानो अपनी योग्यता बखान भर कर रहा है
उपयोगिता से उसका कोई आशय नही है
जाने कबसे यहाँ दीवार पे टंगा हम जैसे असहाय छात्रों पे इक व्यंग बना चिपका है ये

बहरहाल इस युद्ध से किसी तरह निकल
चाय की लालसा लिए ढाबे की तरफ कदम अब बढ़ चले हैं

बादलों या शायद धुंध की परत में छिपा सूरज
और समय का बदलना केवल घडी की धरातल पर
प्रहर का बोध करने गरज न रही सूरज में अब
और इस बीच ओस की बूंदों का
सूरज की रोक-टोक के बिना जमीन पर अटखेलियाँ खेलना

वो मजदूर किस तरह ढाबे की चाय में जीवन पा रहा है?
ये महिलाएं फूल तोडती ईश्वर आराधना में लीन मानो कुछ यथार्थ से अपरिचित
या कह लो अविचलित कैसे यूँ हंस देतीं हैं और सखी का हाल पूछ बैठती हैं ?
ऐसे मौसम में भला किसी मानव का क्या हाल हो सकता है ?
शायद छात्र शरीर ज्यादा सुकोमल हो सोच कर मुह फेर लेता हूँ

ढाबे पे वो छोटा बच्चा कैसे उन बर्तनों को धो रहा है?
इक फटा पुराना स्वेटर और एक टोपा
चाय की लालसा उसके चेहरे पर नही दिखती
न रहा गया जा हंस कर पूछ दिया मैंने -
"मुन्ना घर से इतनी जल्दी काम पर आगये ? ठण्ड नही लग रही क्या ?"
" घर नही है मेरा कोई, यहीं रहता हूँ ..काम नही करूंगा तो खाना नही मिलेगा सर "
कह कर वो फिर से अपने कर्म भूमि का अर्जुन बन गांडीव उठाये मानो चल पड़ा

स्तब्ध कुंठित स्वर में ईशवर से आत्मा ने मानो कुछ कहा, पर मैं सुन न सका
और बिना चाय पिए हॉस्टल वापस लौट आया

जीवन की लयबद्ध धारा में मानो इस सुबह ने विराम सा लगा दिया हो
एक तीव्र स्वर की गूँज ने झकझोर कर रख दिया है मानो
अपनत्व के बीच इक खोखलेपन का अनुभव कर रहा हूँ
उस जैसे बालक के लिए मैं दीवार पे टंगे
एक खराब गीज़र सा नही तो और क्या हूँ ?
भावनाओं की परिधि पर एक ही प्रशन फेरे लगा रहा है
और मेरी अभिव्यक्ति की क्षमताओं पर एक उपहास बने खड़ा है ?

2 comments:

ARK.........ZERO.......... said...

bahut hi utkrashta bhaasha shaili hai kavivar!!!

Unknown said...

good one......

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...