अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Wednesday, January 6, 2010
सूखे पत्ते
अतीत के कुछ पन्ने पलट देखता हूँ
कुछ दूर तक नज़र जा कर रुक जाती है मानो
कुछ दो चार चेहरे कुछ चार छे पल
इन सबके बीच कहीं खोया मेरा जीवन
क्यूँ इन पन्नों में मैं नही हूँ ?
बस कुछ यादें और फिर वही खामोशी
एक स्वप्न बन कर रह गया है अतीत मानो
मैं नहीं पर मुझसा एक यायावर इन पन्नों में
जाने अबतक क्या ढूंढ रहा है?
सूखे पत्तों से ढंके पीछे जाते रास्ते पर
अनायास ही चले जा रहा है
किसी खोज में है वो .... पत्तों की चढ़चढ़ की आवाज़ों से हृदय काँप जाता है मेरा
मानो ये पत्ते हों मेरे अस्तित्व से जुड़े सारे अनुत्तरित प्रश्न
सफलता के इस शिखर पर इन प्रशनों का हृदय सतेह को कुरेदना
विचलित कर के मुझे एक मौन के साथ अकेला छोड़ देना
और बार बार मुझे विवश कर देना
किसी अदृश्य इश्वर में मैं खुद को खो दूं
ये सब मेरी समझ से बहार है आज
किसी अज्ञात की व्यक्तिगत अभिलाषा और एक क्रूर प्रयास है ये
मुझसे जीते जागते शास्वत सत्य को एक स्वप्ना बनाने की
और अतीत की और जाती राह पर एक सूखे पत्ते सा कर छोड़ने की
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
-
(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
-
(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
-
कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
2 comments:
one of the best poems i have read in my entire life!!!
BEAUTIFUL
Post a Comment