अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Sunday, January 31, 2010
मौन
छुक छुक करती रेल
और पूरे चाँद की चांदनी तले चमकते
दूर तक विस्तृत सुनसान खेत
खिड़की पे चुप बैठा मैं सुन रहा हूँ
इक मौन
सर सर करती पवन
और उसके साथ झूमते मेरे बाल
थका हारा मैं
सोने की अभिलाषा लिए
सो नही पा रहा, है चरों ओर
इक भयावह मौन का शोर
और फिर वही दूर तक विस्तृत खेत
खेतों के सीने पे खिंची अनगिनत पग्दंदियाँ
हाँथ की रेखाओं जैसे
खेत के भाग्य को निर्धारित करतीं
दूर तक विस्तृत निद्रा, जीवन रहित रात
और बस मैं और चाँद की (उधार की) चाँदनी
जाने क्यूँ मुझे अब तक जगा रखा है
इस मौन ने
जीवन तू हमसफ़र है, इक राह चल चुके हैं साथ हम
कहीं आगे कोई मोड़ होगा जहाँ तुझसे अलग हो जाऊँगा मैं
और इस बीच पटरियां बदली रेल
क्या लिख रहा हूँ
हिलती इस कलम से चलती रेल में
कागज के सीने पे
पग्दंदियाँ खीचता चला जा रहा हूँ
क्यूँ नही वो मौन इन कागजों में उतर पता है
क्यूँ वह माटी का पुतला दूर खेत में चिड़ियों को बैठने से रोकता है
क्यूँ ये रेल रुकती नही कहीं
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
1 comment:
awesome work.......keep it up....
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