Sunday, February 7, 2010

बैठी हूँ यादों के आँगन में


बैठी हूँ यादों के आँगन में
लम्बे अपने बाल फैलाए
दादी चोंटी बाँध रही है
माँ चूल्हे पर भात पकाये

"फिर समय के पहिये धूल उड़ायें
आँखें धुन्धलायें
और मुझे कुछ याद न आये
और मुझे कुछ याद न आये "

बैठी हूँ यादों के आगन में
ओखल पर नैन टिकाये
खट-खट ओखल बोल रही है
और माँ कुछ गुन गुनाए


"
फिर समय के पहिये धूल उड़ायें
आँखें धुन्धलायें
और मुझे कुछ याद न आये
और मुझे कुछ याद न आये
"

बैठी हूँ यादों के आगन में
सखियों संग अपने हाथ फैलाए
कोई मेहंदी लगा रहा है
माँ ख़ुशी में dhol बजाये



"
फिर समय के पहिये धूल उड़ायें
आँखें धुन्धलायें
और मुझे कुछ याद न आये
और मुझे कुछ याद न आये
"

बैठी हूँ यादों के आँगन में
थाल में आरती सजाये
बेटा घर आ रहा है
सोच सोच जी हर्षाये

"
फिर समय के पहिये धूल उड़ायें
आँखें धुन्धलायें
और मुझे कुछ याद न आये
और मुझे कुछ याद न आये
"

2 comments:

strangerland said...

I'll have to show this to a friend for translation. Downloaded an Imrat Khan CD. like one I had in the mid 1990's. I'm on facebook

Anonymous said...

Hats off to u !!!

u got a good pen ....

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...