अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Monday, February 15, 2010
कुछ दूर खड़े एक ठूंठे पेड़ को देख रहा हूँ
घडी की टिक टिक सुनता
कमरे में खिड़की से चिप्पकी रखी मेज पर
बैठा
कुछ दूर खड़े एक ठूंठे पेड़ को
देख रहा हूँ
मैं .....
सीने में अंगार सुलगता रहा दिन भर
और अब
अंतर से उठते धूँये में
खांसता,
आँखें मलता
सांस लेने को तड़पता
खिड़की पर आ बैठा मैं
कुछ दूर खड़े एक ठूंठे पेड़ को
देख रहा हूँ
मैं .....
सूखे पेड़ की एक डाल पर अचानक
यूँही आ बैठा एक गिद्ध
सबसे ऊंची टहनी पर
पंजों से कस के दबोंच कर दाल को ...
कुछ धुंए का असर है की
आँखें धुंधला गयी हैं
ज्यादा कुछ देख नहीं पाता मैं
फिर कुछ देर वहीँ बैठ कर
वो गिद्ध न जाने कौन सी अपनत्व की ढली
घोलता रहा मेरे मन में
अंतर की आग बुझने लगी मानो
धीरे धीरे ..
जीवन का एक सच
खिड़की के इस पार
जलाता सुलगता देख चूका मैं
जीवन का एक सच
खिड़की के उस पार
उस ठूंठे पेड़ की स्थिरता में देखा रहा हूँ
पर जीवन-गणित में
आधा-आधा एक कहाँ होता है बोलो ?
ये सच भी,
अभी पूरा कहाँ है बोलो?
गिद्ध कुछ देर बैठा रहा
और फिर उड़ गया
एक शून्य में
टहनी कुछ देर हिलती रही
और फिर वही स्थिरता
कुछ दूर खड़े एक ठूंठे पेड़ को
देख रहा हूँ
मैं .....
समझ की परिधि पर
बेबूझ पहेली सा गूमता रहा एक ही दृश्य
उस गिद्ध का यहाँ तक आना
टहनी को हिला
फिर शून्य वापस चले जाना
टहनी का कुछ देर हिल कर
फिर वही स्थिरता पाना
सृष्टि के नीयम
और इन्में बंधा जीवन
भूमिका क्या है उस ठूंठ की, खिड़की के उस पार?
भूमिका क्या है इस ठूंठ की, खिड़की के इस पार?
किन गिद्धों की प्रतीक्षा है
इन ऊंची सूखी टहनियों को?
कुछ दूर खड़े एक ठूंठे पेड़ को
देख रहा हूँ
मैं .....
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
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