Wednesday, February 17, 2010

वो खूब हंसा था नुक्कड़ पर मैखाने में


रात फिर शोर उठा था, कहीं पर, जाने अंजाने में
सुना है कल वो खूब हंसा था नुक्कड़ पर मैखाने में

जीवित पलों की आपाधापी
निद्रा में अबतक थी जिसने नापी
जीवन बीता था जिसका अब तक
बस सोने और सुस्ताने में
सुना है कल वो खूब हंसा था नुक्कड़ पर मैखाने में

वो कहता है 'मैं' बिन जीवन-सार अधुरा
अंधा है जग ये सारा संसार पूरा
नहीं समझते लोग यहाँ पर
रहस्य है कुछ 'मैं ' में अंगूर के दाने में
सुना है कल वो खूब हंसा था नुक्कड़ पर मैखाने में

समय की पदचाप सुनता
जीवन सार आप बुनता
दिखा गया वो इक गाँठ साकी को
जीवन के ताने बाने में
सुना है कल वो खूब हंसा था नुक्कड़ पर मैखाने में

..........................

चक्रेश सिंह
१६/२/२०१०

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...