Monday, February 22, 2010

आखर लता


खाली कमरा
बंद दरवाजे
चुप्पी देर रात की..........

बंद खिड़की
खुला पर्दा
आँख प्यासी बरसात की.....

कोरा कागज
जलता दिया
भूखी कलम किसी बात की ....

शांत चित्त
मद्धम साँसे
कहानी यही हर रात की ........

बंद मुट्ठी (पर)
टिकी ठुड्डी
कामना मन में प्रभात की


ठंडी पवन
चींखते जीव
तस्वीर समाज के हालात की


जीवन दिष्टांत
वर्त्तमान अतीत
सीमाए मानव जात की

भावना पुष्प
आखर लता
कविता ये अज्ञात की


विधि विधान
गीता कुरान
संस्कार शिक्षाएं तात की

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...