इक घडी हुआ करती थी (मेरी )
टिक टिक चलती रहती थी
कुछ न कहती कुछ न मांगती
बस समय दिखाया करती थी
इक दिन हंस कर के पूछ जाने किस कारण
क्यूँ चलती रहती हो तुम एय 'जान -ए -मन '
न्योछावर करती हो मुझपर आखिर क्यूँ
तुम अपना योवन, तन-मन-जीवन ?
बस इतना सुनना था की वो,यारों चहक गयी
सच कहता हूँ ,बिन पीये भरी दुपहरी बहक गयी
घूम घूम कर कांटे तीनों टूट गए यारों उसकी अंगड़ाई पर
जाने ऐसा क्या हुआ की दुनिया उसकी महक गयी
'एय प्राण प्रिये अपनाया तुमने
पूरी हुई जीवन की आस
पाषाण बन कर रह गयी थी मैं अहिल्या
अब पहुंची साजन के पास'
मैं भौचक्का रह गया हक्का बक्का
घड़ियाँ भी क्या बोलती हैं
हाल-ए -दिल यूँ खोलती हैं?
वो तुक रुक देख रही मुझे बस
ऐसे जैसे काम तीरों से घायल हुई वो
खो बैठी अपने आप पर वश
'देख प्यारी, प्राण दुलारी,
फुर्सत में करेंगे बातें ढेर सारी
समय बता दे
छूट न जाए मेरी लोरी'
पर कहाँ मानती जब ठान लेती हैं
घड़ियाँ भी तो आखिर स्त्री होतीं हैं
हार जाते हैं महारथी भी इनसे
जब ये नैनो में नीर भरकर रो देतीं हैं
अब हार गया मैं भी क्या करता
ये नहीं की मैं हूँ उससे डरता
चल दिए 'डेट' पर दोनों
इससे पहले की सदमे से उभरता
पकड़ मेरी कलाई पहुँच गयी बाज़ार में वो
कंगन झुमका पायल दिला दो
'मिसेस गुप्ता' की घड़ी सा चमकता 'दयाल' दिला दो
और फिर दुकानदार से मोल भाव करो तुम
झिक झिक करो दाम करा दो
अब थक हार कर घर लौटे जब
उचल जा बैठी टेबल पर तब
इक प्याली चाय पिला दो
इतना किया ये भी करो अब
.................................................
चक्रेश सिंह
16.2.2010
disclaimer: No offenses to women. This poem is just intended to make you laugh and nothing else...
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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