Monday, March 8, 2010

एक ग़ज़ल तेरे नाम कर गए

लम्हा लम्हा याद कर सुबो से शाम कर गए
लो आज फिर एक ग़ज़ल तेरे नाम कर गए

हुस्न देख लिया हमने परदे को खेंच कर
इस बेखुदी में जाने क्या क्या काम कर गए

खूब चला सिलसिला छुप छुप के मिलने का
चर्चा मुहब्बत का शेहेर में आम कर गए

अपनी कब थी परवाह, जिल्लत से कब था डर
लो साथ अपने तुझको भी बदनाम कर गए

जुदा हुआ तू मुझसे , चाँद में पा लिया तुझे
तुझसे जुदा तन्हा जीने का इत्तेजाम कर गए

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।

अरुण मिसिर said...

वाह
बहुत उम्दा गजल
बधाई

वीनस केसरी said...

अपनी कब थी परवाह, जिल्लत से कब था डर
लो साथ अपने तुझको भी बदनाम कर गए

जुदा हुआ तू मुझसे , चाँद में पा लिया तुझे
तुझसे जुदा तन्हा जीने का इत्तेजाम कर गए

बढ़िया शेर

chakresh singh said...

dhanyawaad aap sab ka

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...