दादी की कोठरी में रखी लकड़ी की आलमारी
अन्दर रखती है दादी उसमें
पूजा का सामन और एक डब्बे में
मिश्री बताशे और किशमिश .
दोपहर में सब सो जाते नींद मुझे आती नहीं
सोयी दादी तो उठानी भी थीक नहीं
एक डब्बा खीच लाता हूँ नन्हे हाथों से
और सामने रेख कर आलमारी के
खड़ा हो जाता हूँ उसपर
फिर खोलता हूँ पल्ला आलमारी का
मुट्ठी भरता हूँ किशमिश बताशों से
छोटी मुट्ठी मेरी, थोडा खता ज्यादा गिराता हूँ
कुछ भी शोर किया नहीं मैंने
जाने कब दाबी नींद से जाग गयी
अब मेरे पीछे खड़ी मुस्का रही है वो
कान्हा कह गोंद में उठा लिया मुझे...
दादी की गोंद में कितना ऊंचा हो जाता हूँ में
.
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Monday, March 22, 2010
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
2 comments:
दादी की कोठरी में रखी लकड़ी की आलमारी
अन्दर रखती है दादी उसमें
पूजा का सामन और एक डब्बे में
मिश्री बताशे और किशमिश .
दोपहर में सब सो जाते नींद मुझे आती नहीं
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
कान्हा कह गोंद में उठा लिया मुझे...
दादी की गोंद में कितना ऊंचा हो जाता हूँ में
waah yaar bahut khoob likha hai ..
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