Thursday, March 4, 2010

कोई आईना दिखाता ही नहीं

खुद को देखे अरसा हो गया
की अब कोई आईना दिखाता ही नहीं

थक गया हूँ, देखता आया अब तक औरों को
की इस शेहेर में कोई चेहरा भाता ही नहीं

सोचा था ये जिंदगी तेरे नाम कर दूंगा
मेरी गली पलट कर तू आता ही नहीं

अश्को का सैलाब बहा रखा है
के ये दिल अब कोई बात छुपाता ही नहीं

खुद अपना ही जनाजा सजाये बैठा हूँ
कोई आगे बढ़ कर हाथ लगता ही नहीं

1 comment:

Unknown said...

love your poems...........another great work.......

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...