भावनाओं का अनुसरण करती मेरी समझ
आ पहुचती है बार बार इक पड़ाव पे
जहाँ धुंधले आसमान में
एक चलती आकृति
स्वेत साडी में लिपटी ,
आँचल लहराती
जाने कबसे क्या दूंढ रही है
हाथ आगे बड़ा कर चाहता हूँ छूना उसको मैं
चाहता हूँ साथ बिठा कर पूछना,
उसकी अनवरत यायावरी का उद्देश्य
पर न जाने क्यूँ वो दूर भागती है मुझसे
एक शून्य में,
एक अँधेरी काली भयावह गुफा की ओर
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
3 comments:
वह हमारी आत्मा है,
हमारा सर्वस्व, हमारी
पूर्ण अभिव्यक्ति है।
बहुत ही मार्मिक रचना
bahut bahut dhanyavaad Arun sir aap ka ..kavita padne aur protsaahit karne ke liye
bahut bahut dhanyavaad Arun sir aap ka ..kavita padne aur protsaahit karne ke liye
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