शाखों से गिरते पत्तों को क्या देखा है तुमने कभी,
एक गिरता है फिर अक और भी
एकदम वैसे ही...
बारिश में बींगते बच्चों को क्या देखा है तुमने कभी
माँ दौड़ती है उनके पीछे
और भींगती है एकदम वैसे ही
प्याली में राखी चाय को ठंडी होते क्या देखा है तुमने कभी
भाप उठती है और खो जाती है हवा में
एकदम उठते है
मेरी प्याली खाली क्यूँ है अब तक
माँ नहीं दौड़ती मेरे पीछे क्यूँ
क्यूँ बारिश की बूँदें नहीं भिंगोतीं मुझको अब
किस पत्ते के गिरने की राह देख रहा हूँ मैं
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
-
(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
-
(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
-
कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
4 comments:
क्यूँ बारिश की बूँदें नहीं भिंगोतीं मुझको अब
किस पत्ते के गिरने की राह देख रहा हूँ मैं
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
Maaf kijiyga kai dino busy hone ke kaaran blog par nahi aa skaa
बहुत सुन्दर रचना है, आज आपकी कई रचनाएँ पढ़ी अच्छा लगा!
बहुत मार्मिक रचना
Post a Comment