Wednesday, June 2, 2010

अंक गणित

अंक गणित
अंको से शुरू होकर
एक सीमा रहित व्योम में उड़ती जाती है |
इस विस्तार को देख कर
दंग रह गया हूँ मैं |
अंकों का ज्ञान,
सृष्टी रचयिता को कितना था?
इस प्रश्न ने मुझे दे दिया है
एक अनिर्वचनीय मौन |

1 comment:

कडुवासच said...

...बहुत सुन्दर !!!

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...