बंद करके घर के दरवाज़े,
टूटे छप्पर से ऊपर देखूं तो
ऐसा लगता है के सारे तारे,
राज की बात कोई बताने को
जैसे चुपके से मेरे कानों में,
दैवीय गीत कोई गाने को
आये हों मेरे दुनिया में
रंग नया लाने को
फिर कहीं से चंदा बैरी
चला आये दबे पांव बीच हमारे
और रात्री के स्याह आँचल में
सिमट जाएँ सारे तारे.......
बात अधूरी रह जाती
हृदय की वेदना तड़पाती
समझ से मेरी बाहर है
तारों का मुझ तक आना
बिना कहे कुछ भी पर
अंधेरों में खो जाना ....
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Friday, July 16, 2010
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कब शहर बुला ले, ख़बर नहीं जब तक गाँव में हूँ, ज़िंदा रहने दो सोने दो खुले आसमान के नीचे रहने दो मुझे अकेले मंदिर के चौबारे पर गिरने दो इ...