Saturday, September 18, 2010

पत्थर का टुकड़ा

एक पहाड़ की चोटी
सदियों से इक ऊचाई पर टिक कर
लगातार खुला आसमान देखती आई है
और साथ ही नीचे वादी में बहते
तेज धार पानी की उथल पुथल को भी
आज अचना धरती के नीचे हुए हल्की सी गतिविधि से
सतेह पे बड़ा भूचाल आया था
और वो चोटी पहाड़ से टूट कर
घाटी में लुढ़कती ठोकर खाती आ गिरी
गिरते समय एक पल को खुला आसमान दीखता
और दूसरे पल नीचे जल का तेज़ प्रवाह
सदियों का भूत, वर्मान के कुछ क्षणों में परत दर परत खुलता चला गया
और वो पत्थर का टुकड़ा लुढ़कता चला गया
लुढ़कता चला गया

4 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत पसन्द आया
हमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया .......माफी चाहता हूँ..

मिसिर said...

जीवन-सत्य की मार्मिक गाथा ,
सुन्दर लेखन,
सराहनीय!

मिसिर said...

जीवन-सत्य की मार्मिक गाथा ,
सुन्दर लेखन,
सराहनीय!

मिसिर said...

जीवन-सत्य की मार्मिक गाथा ,
सुन्दर लेखन,
सराहनीय!

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...