अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Monday, October 11, 2010
ये शाम कहीं फिर मुझसे न
ये शाम कहीं फिर मुझसे न
कोई कविता लिखवा जाए
कहीं अनकही बात कोई फिर
इन पन्नो पे न आ जाए
हाथ बाँध दो कोई मेरे
मुझे कहीं और ले जाओ
शोर मचा दो बस्ती में
मौन मुझे बस दे जाओ
मन के गलियारों में फिर से
भूला बचपन न छा जाए
क्यूँ करती हो अट्हास मुझसे
ऐ डूबती किरणों बोलो
उपहासित करते हो क्यूँ मुझको
शब्द माला के वर्णों बोलो
अंतर मन की पीड़ा का
कोई थाह कहीं न पा जाए
न करो बात मुझसे तुम ऐ मन
भावुकता से मैं दूर सही
नहीं चाह मुझको भावों की
चूर ह्रदय सो चूर सही
कहीं कोई स्नेह भाव से
घाओं को न सहला जाए
ह्रदय का मद्धम साँसों का
रुक रुक कर आना जाना
मंद सुरीली पुरवाई का
कानों में कुछ कह जाना
कहीं पल भर का सुख दे कर
मुझको न रुला जाए
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
6 comments:
प्रियवर चक्रेश सिंह जी
नमस्कार !
बहुत अच्छा गीत लिखा है
उपहासित करते हो क्यूँ मुझको
शब्द माला के वर्णों बोलो
अंतर मन की पीड़ा का
कोई थाह कहीं न पा जाए
वाह ! वाह ! बहुत सुंदर !! बधाई !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
आपके ब्लॉग पर लगी अन्य काव्य रचनाएं भी बहुत ख़ूबसूरत है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut bahut dhanyavaad राजेन्द्र ji meri kavitayen padhne ka protsaahit karne ka...
हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....
अच्छा नवगीत लिखा ,चक्रेश जी,
बहुत अच्छी लगा पढ़ कर !
बहुत बधाई !
dhanyavaad misir sir aur sanjay ji ...aap log mujhe nirantar protsaahit karte rehte hain ...main aap dono ka hi bahut aabhaari hun
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