Thursday, December 16, 2010

और नया भी क्या होगा

नया साल, पुराने ख़त, तेरी यादें

और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा

वही ठंढी, फिजा बरहम, वही सौतन, अँधेरी रात

और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा

दबी आवाज़ में कहता हूँ
मैं खुद से ही चुप रहने को
मिटा देंगे ये सुनने वाले

और नया भी क्या होगा

दीवाना मैं हूँ ख़्वाबों का
हकीकत में कब रखा कुछ था
वही बातें दुनिया दारी की
वही जिद-ओ-जहद जिन्दा रहने की

और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

naye saal me sab kuch hoga..

संजय भास्‍कर said...

ऐसी कवितायेँ ही मन में उतरती हैं ॥

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...