Sunday, July 24, 2011

मेरे माजी से जुडी डोरें

मेरे माजी से जुडी डोरें
मुझे अब वापस बुलातीं हैं....



ये हाल-ऐ-दिल अगर मेरी
यहाँ पर जान लेले तो
मेरे यारों रहम करना
मेरी तुम राख ले कर के
पुराने डाक खाने की
चौखट पर बिछा देना...
किसी कासिद के कदमों संग
किसी ख़त के बहाने मैं
कभी उस चार-दिवारी तक
पहुँच ही जाऊंगा..
जहाँ बैठा मेरा बचपन
फकत इस नाज़ पे दिल के
के गिनना सीख चूका है वो
अब भी अंधेरों में
तारे गिन रहा होगा
जब टूट के डालों से
गिरती होंगी पंखुड़ियां
वो दिल-ओ-दीवार की दस्तख पे
गिनना भूलता होगा
वो दिल-ओ-दीवार की दस्तख पे
नना भूलता होगा

Saturday, July 2, 2011

अपने ही वादों के, कर्ज़दार हो गए

अपने ही वादों के क़र्ज़दार हो गए
बैठे थे किनारों पे मझधार हो गए

हम ढूंढ रहे अबतक खोयी हुयी हस्ती
जो भूल गए खुद को वो पार हो गए

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...