Thursday, September 22, 2011

सब कुछ भुला कर चल दिए

इक साल बीता और हम
इक नए सफ़र की पुकार पर
फिर से नयी तलाश में
सब कुछ भुला कर चल दिए


कुछ यार छूटे गम हुआ
कुछ ख्वाब टूटे गम हुआ
इक बेतुके से दाव पर
सब कुछ लुटा कर चल दिए




बुन्तर की पुरानी तांत पर
शतरंज की शेह और मात पर
इक ख्वाब बुना इक जंग लड़ी
और गुन गुना कर चल दिए



इक कारवां जो मिल गया
ये सफ़र शुरू हुआ नया
जैकारों के उठते शोर पर
हाँथ उठा कर चल दिए

कभी बादलों में खो गए
कभी घाटियों में सो गए
लहरों की पृष्ठ भूमि पर
लिख कर मिटा कर चल दिए

2 comments:

रविकर said...

कुछ यार छूटे गम हुआ
कुछ ख्वाब टूटे गम हुआ
इक बेतुके से दाव पर
सब कुछ लुटा कर चल दिए

बधाई ||

shephali said...

इस सफ़र को एक हसीं मंजिल मिले

शुभकामनाएं

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...