=.==/=.==/=.==/=.=
आप करके हौसला इक बार आगे तो बढें
जिंदगी इंसान की है डर से इतना क्यूँ डरें
जब जवानी मांगती है बाजुओं में आसमाँ
तो हकीमों की दुकानों में गुलामी क्यूँ करें
आज सीने को जलाती हो अगर हर आह तो
आस कल पर छोड़कर बेनाम ऐसे क्यूँ जियें
धडकनों में जो उबलता हो महाभारत कहीं
तो प्रतिज्ञा करके अर्जुन सी यहाँ आकर लड़ें
वक़्त अपनी मौत का फ़र्मान लेकर आएगा
जब हक़ीकत जानते हैं जीतेजी तब क्यूँ मरें
कुछ असर हो या न हो चक्रेश तेरी बात का
तू चला चल इस शहर में हम गुजारा क्यूँ करें
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
-
(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
-
(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
-
कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
मेरी बधाई स्वीकार करें ||
गर्लफ्रेंड के इनकार पर IITian ने दी जान
**ऊंचीं शिक्षा के दिखे, फल कितने प्रतिकूल |
**रिश्ते - नाते भूल के, जीना जाते भूल |
**जीना जाते भूल, हसरतें मातु-पिता की |
**प्रेम-पाश में झूल, देखता राह चिता की |
**दे दे रे औलाद, हमें इकलौती भिक्षा |
**वापस आ जा छोड़, यही गर ऊंचीं शिक्षा ||
bahut hi achchha sandesh diya hai sir aapn ne kavita ke maadhyam se...mujhe nirantar protsaahit karne ke liye bahot dhanyvaad,
tum hamesha umda likhte ho chakresh .... bahaut acche
Post a Comment