ये खलिश पल रही लफ़्ज़ों के टुकड़ों पर
वगर्ना दिल तेरी क्या ज़ीस्त थी इस भरी भीड़ में
यहाँ लोग हैराँ हैं देख कर हुस्न को..
यहाँ हुस्न है मुशरूफ़, झूठी तारीफ़ में ..
एक दिल ..सच्चा दिल ...किस काम का यहाँ
यहाँ बिक जाते हैं सैकड़ों भीड़ में
टूट जाते हैं ठंढी सर्द रात में ..
पल रहा तू मगर चक्रेश के
अंदाज़-ऐ-बयाँ और स्याही पे
कोई फ़रिश्ता तुझे पालता भीड़ में
वगर्ना मर जाता तू भी सभी की तरह ..
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
3 comments:
कितनी खूबसूरती से जज्बातोँ को उकेरा आपने
आपका बयान हमेशा की तरह प्यारा!!
thans Sanjay ji ..aap mere sabse poorane padhne waalon meni se hain...aap ka bahut aabhaari hun
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