Saturday, February 4, 2012

आज दुखती रग पे खंजर रख रहा हूँ

आज दुखती रग पे खंजर रख रहा हूँ
फिर कसौटी पर सिकंदर रख रहा हूँ

पूछता था वक़्त वादों के वज़न
मैं तराजू पर समंदर रख रहा हूँ

कागजों की हैसियत इतनी नहीं
आसुओं के सैलाब अन्दर रख रहा हूँ 


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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...