Sunday, March 4, 2012

ऐ ज़िन्दगी तू बिकुल ऐसी ही रह सकेगी क्या

ऐ ज़िन्दगी तू बिकुल ऐसी ही रह सकेगी क्या
सारे दोस्त यार बगल के कमरें में बैठे
हस्ते रहें
उनकी आवाजें मुझतक आती रहे
मैं यहाँ खामोश
अकेला
इस कमरे में
यूँही बैठा रहूँ
गर्म पलकों की सुस्त झपकी पर
कुछ सोछों
सोच कर मुस्काऊँ
ऐ ज़िन्दगी तू बिलकुल ऐसी ही रह सकेगी क्या ?
यूँही रह रह कर
कोई आता रहे जाता रहे
मेरे कमरे में
और मैं यहाँ यूँही लिखता रहूँ
सुनाता रहूँ उलझी हुई आवाजें


2 comments:

रविकर said...

बढ़िया बने हैं बंधू |
बधाई ||

chakresh singh said...

than k you sir :)

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...