Tuesday, April 17, 2012

गिला ऐ बुतों क्या करना, उसकी खता नहीं है

गिला ऐ बुतों क्या करना, उसकी खता नहीं है
नासमझ है वो न समझा, वाईज खुदा नहीं है

दिल-ऐ-आईने से पूछा, मुझको खुदी दिखा दे
मेरा अक्स हंस के बोला, उसको पता नहीं है

कभी तिश्नगी पे हँसना, कभी बेकली पे रोना
कहता हूँ फिरभी अबतक, मुझको नशा नहीं है !

वो सवाल पूछता है, और मैं ये देखता हूँ
ये फ़कीर भी है कैसा, बिलकुल जला नहीं है !

कुछ भी नहीं है लेकिन, 'चक्रेश' ये समझलो
ये खलिश रहेगी इसकी, कोई दवा नहीं है ||




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