गिला ऐ बुतों क्या करना, उसकी खता नहीं है
नासमझ है वो न समझा, वाईज खुदा नहीं है
दिल-ऐ-आईने से पूछा, मुझको खुदी दिखा दे
मेरा अक्स हंस के बोला, उसको पता नहीं है
कभी तिश्नगी पे हँसना, कभी बेकली पे रोना
कहता हूँ फिरभी अबतक, मुझको नशा नहीं है !
वो सवाल पूछता है, और मैं ये देखता हूँ
ये फ़कीर भी है कैसा, बिलकुल जला नहीं है !
कुछ भी नहीं है लेकिन, 'चक्रेश' ये समझलो
ये खलिश रहेगी इसकी, कोई दवा नहीं है ||
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...
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