Friday, May 25, 2012

मेरी हर बात पे हाँ हो ये ज़रूरी तो नहीं


मेरी हर बात पे हाँ हो ये ज़रूरी तो नहीं 
मेरे जैसा ही जहाँ हो ये ज़रूरी तो नहीं

कभी बागीचे से पूछो जीस्त के फलसफे  
हर सु मौसम मेहरबाँ हो ये ज़रूरी तो नहीं

तू न समझा के लिखा करता था इतना क्यूँ भला 
तू भी उतना परेशाँ हो ये ज़रूति तो नहीं

नीम की छाँव में सोया सोचा करता हूँ तुझे 
कोई मुझपर मेहरबाँ हो ये ज़रूरती तो नहीं 


सोच कर लाल हुआ चेहरा 'चक्रेश' जो उसे 
आज वो भी पशेमाँ हो ये ज़रूरी तो नहीं 

4 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत खूबसूरत.......................

दाद कबूल करें.

chakresh singh said...

:) shukriya...behr me nahi la paya is gazal ko achche se...
kabhi fursat mein sahi karonga..

thanx a lot fro reading and appreciating.

Regards,
Chakresh.

Asha Joglekar said...

मेरी हर बात पे हाँ हो ये ज़रूरी तो नहीं
मेरे जैसा ही जहाँ हो ये ज़रूरी तो नहीं ।

वाह बहुत खूब । शुक्रिया इस खूबसूरत गज़ल के लिये ।

chakresh singh said...

Thanks Asha ji.

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...