Saturday, July 7, 2012

काबिल-ऐ-गौर


काबिल-ऐ-गौर हैं मेरी सांसें 
मैकदे छूट गयेंये ना छूटीं
आज भी आती हैं ये जाती हैं 
ख्वाब तो रूठ गयें, ये ना रूठीं 



चाह कर भी न कह सके उनसे
वो मेरी बेबसी पे हँसते थें 

वक़्त खामोश कर गया उनको 
जो मेरी दिलगी पे हँसते थें

--saving for future--

2 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत खूब.....
सुन्दर कविता....

अनु

chakresh singh said...

thanks anu ji.....ye dono hi adhoori teh gayeeN ....

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...