Saturday, August 18, 2012

दिल की इस बेकली को क्या कह दूं


दिल की इस बेकली को क्या कह दूं
अपनी सादादिली को क्या कह दूं

मुझको अलफ़ाज़ अब नहीं मिलते
आप की संघ्दिली को क्या कह दूं

मेहरबाँ आप के इशारों पे
खिल रही हर कलि को क्या कह दूं

नाम:बर अब  इधर  नहीं आते
प्यार वाली  गली को क्या कह दूं

उड़के आया है ख़त मेरे अंगने
नज़्म आधी जली को क्या कह दूं

चाह कर देख भूलना उसको
एक नसीहत भली को क्या कह दूं

आज 'चक्रेश' कह रहा दिल की
आज ग़ालिब वली को क्या कह दूं

2 comments:

रविकर said...

बहुत खूब चक्रेस जी ||

धीरेन्द्र अस्थाना said...

नज़्म आधी जली को क्या कह दूं!

क्या वजा फरमाया है !

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...