Saturday, January 4, 2014

दिल को फ़िक्र-ऐ-जिंदगी न रही मैं आखिर क्या करूँ

दिल को फ़िक्र-ऐ-जिंदगी न रही मैं आखिर क्या करूँ 
अक्ल कहती है जवानी का वक़्त ज़ाया ना करूँ 

अब रकीबों के शहर में मैं कभी जाता नहीं 
बे मने दिल से वो कहते हैं के मैं आया करूँ 

क्या अदम से इंजील तक के सफ़र से वाकिफ नहीं
कह रहे हो के नया जोश-ओ-जुनूं पैदा करूँ

बैठा हूँ बज़्म-ऐ-साकी और जाम खाली हो चला
रख के ऊँगली होंठ पे कहता है शिकायत ना करूँ

-ckh.
(First Sunday morning of 2104.)

P.S:
रकीबों : friends.
अदम: Adam (first man on earth).
इंजील: Bible.
बज़्म-ऐ-साकी: In company of the bartender (second meaning - God).
जाम: glass of wine (second meaning - human body, wine - life/ soul)

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ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...