Sunday, February 7, 2016

अँधेरी रात में मैंने ढुलकता चाँद पाया है

अँधेरी रात में मैंने ढुलकता चाँद पाया  है
महाभारत के किस रथ का ये पहिया छत पे आया है

उठाया है इसे हाथों में जिसने है वो अभिमन्यु
या केशव ने पितामह को कहीं इससे डराया है?

कहीं ये कर्ण के रथ का वो पहिया तो नहीं जिसने
अभागे सूर्य के बेटे को किसी रण में हराया है?

समय का चक्र लगता है ये टूटा हुआ पहिया
कई बीती हुयी सदियों का इसमें रंग समाया है

No comments:

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...