Wednesday, June 3, 2020

कब शहर बुला ले, ख़बर नहीं

कब शहर बुला ले, ख़बर नहीं
जब तक गाँव में हूँ, ज़िंदा रहने दो
सोने दो खुले आसमान के नीचे
रहने दो मुझे अकेले मंदिर के चौबारे पर
गिरने दो इमली के फल पाँव पे मेरे
रहने दो चिड़ियों के झुरमुट डालों पर
ढलने दो सूरज को आम के बागों में
बीतने दो दिन दोपहरों को लम्हा लम्हा
बुनने दो मुझको मेरे बचकाने ख़्वाब
कब शहर बुला ले मुझको ख़बर नहीं
जब तक गाँव में हूँ
ज़िंदा रहने दो

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...