कब शहर बुला ले, ख़बर नहीं
जब तक गाँव में हूँ, ज़िंदा रहने दो
सोने दो खुले आसमान के नीचे
रहने दो मुझे अकेले मंदिर के चौबारे पर
गिरने दो इमली के फल पाँव पे मेरे
रहने दो चिड़ियों के झुरमुट डालों पर
ढलने दो सूरज को आम के बागों में
बीतने दो दिन दोपहरों को लम्हा लम्हा
बुनने दो मुझको मेरे बचकाने ख़्वाब
कब शहर बुला ले मुझको ख़बर नहीं
जब तक गाँव में हूँ
ज़िंदा रहने दो
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Wednesday, June 3, 2020
ऐसे भी तो दिन आयेंगे
ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन हँसती रातें...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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कभी समय के साथ जो चलकर भूल गया मैं मुस्काना मेरी कविताओं फिर तुम भी धू-धू कर के जल जाना बहुत देर से चलता आया बिन सिसकी बिन आहों के आज अगर ...