Tuesday, October 7, 2025

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से

ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ

(पायाब: shallow) 



दरख़्तों को शिकायत है के तूफ़ाँ तोड़ जाते हैं

ज़रा सी शाम ढल जाये, तो साये छोड़ जाते हैं 

Saturday, September 21, 2024

उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही

 उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं…

याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं 


रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा 

ख़ुद के हाथों, ख़ुद को खोने, जैसी वैहशत ही नहीं


वो नहीं थें, तो भी अपना, जी कहीं लग जाता था 

वो नहीं हैं, सो अब उनकी, हमको चाहत भी नहीं 


उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं…

याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं 

Monday, March 11, 2024

ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे

रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे


याद करेंगे बीती बातें

ख़ुशियों के दिन 

हँसती रातें 

साये से जब टकरायेंगे 

डर जाएँगे, घबरायेंगे 

ऐसे भी तो दिन आयेंगे… 


तस्वीरें जब बीते समय की 

सामने कोई रख जाएगा 

तुमको छूने को आतुर हम 

हाथ हवा में लहरायेंगे 

और किसी को ना पायेंगे 

रोयेंगे फिर घबरायेंगे 

जीने से भी कतरायेंगे 

ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे


On the night of 5th-6th March 2024, penned this while waiting on a reclining chair in a hospital room at the Northside Hospital, Sandy Springs, GA. And my wife was still recovering from a surgery… 

Wednesday, June 3, 2020

कब शहर बुला ले, ख़बर नहीं

कब शहर बुला ले, ख़बर नहीं
जब तक गाँव में हूँ, ज़िंदा रहने दो
सोने दो खुले आसमान के नीचे
रहने दो मुझे अकेले मंदिर के चौबारे पर
गिरने दो इमली के फल पाँव पे मेरे
रहने दो चिड़ियों के झुरमुट डालों पर
ढलने दो सूरज को आम के बागों में
बीतने दो दिन दोपहरों को लम्हा लम्हा
बुनने दो मुझको मेरे बचकाने ख़्वाब
कब शहर बुला ले मुझको ख़बर नहीं
जब तक गाँव में हूँ
ज़िंदा रहने दो

Thursday, April 7, 2016

चल दोबारा ज़िन्दगी से प्यार कर

तू किसी शोख़ का सिंगार कर
रख भी दे ये ख़ामोशी उतार कर
तीरगी ये पल में टूट जायेगी 
चल दोबारा ज़िन्दगी से प्यार कर
एक ही नहीं कई शिकायतें
जानता हूँ ज़ीस्त की हिकायतें
फिर भी मेरा अब तू ऐतबार कर
कह रहा हूँ जो वो मेरे यार कर
तीरगी ये पल में टूट जायेगी
चल दोबारा ज़िन्दगी से प्यार कर
~ckh

Tuesday, February 16, 2016

जाने क्यूँ संघदिल से ही फिर इश्क़ फ़रमाता हूँ मैं

जाने क्यूँ संघदिल से ही फिर इश्क़ फ़रमाता हूँ मैं 
राज़ लाता हूँ लबों तक और पछताता हूँ मैं 

ज़ब्त कर के हर ख़लिश इस ज़िन्दगी के नाम पर 
महफ़िलों में गीत गाता नाचता जाता हूँ मैं 

कुछ सितारे आसमाँ से टूट कर गिर जाएंगे 
रात भर छत पे खड़ा हो नज़रें दौड़ाता हूँ मैं 

साक़िया के गेसुओं में जब उलझती उंगलियां 
वो लिपट जाता है मुझसे यूँ सुलझ जाता हूँ मैं 

एक सूरज की तरह बस फ़ितरतन हर शाम ही 
सागरों में डूब जाता हूँ निकल आता हूँ मैं 

~Sagar

Beeti baate.n bhula ke hansta hu.n

Beeti baate.n bhula ke hansta hu.n
Apni ghazale.n jalaa ke hansta hu.n..

Log is baat par khafa mujhse..
Unko ungli dikhaa ke hansta hu.n...

Zikr chheda kisi ne ulfat ka..
Aur mai.n muh daba ke hansta hu.n

Rehnuma kar gaya mujhe tanha..
Apni manzil pe aa ke hansta hu.n...

Ye na samjho ke bach gaya 'Sagar'
Ashq moti bana hansta hu.n

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)  दरख़्तों को शिकायत है के तूफ़ाँ ...