Saturday, August 2, 2014

आते रहे हो ख़्वाबों में ऐ यार कबसे तुम

आते रहे हो ख़्वाबों में ऐ यार कबसे तुम 
कैसे कहोगे अलविदा अब जाँ-बलब से तुम ? 

चश्म-ओ-चराग़-ऐ-दरमियाँ फैली है तीरगी 
दे दो मुझे भी रौशनी छू कर के लब से तुम 

निस्बत में तेरी साक़िया काफ़िर हुआ के मय  
पीता नहीं था पी रहा हूँ बैठे हो जबसे तुम 

मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)