Tuesday, February 28, 2012

Yes! I have an edge

Yes I have an edge
over the fearful gatherings of cowardly crowds
Yes I have an edge
over the immoral - wrapped in filgthy shrouds
and Yes I have an edge
over all those who live in fear n die in doubts

For I was born to a mother,
who was destined to claim one day
that she gave birth to a son
... who wont give up
till his days are done!

Yes I have an edge
over the mocking miserable bards
Yes I have an edge
Standing in unfair casio yards
Yes I have an edge
In the game of dice in the war of cards

For I was born to a mother,
who was destined to claim one day
that she gave birth to a son
who wont give up
till his days are done!

Thursday, February 16, 2012

जत्था

जब लूट मची थी बागों में

अंधड़ और आंधी के बाद

पेड़ों के सारे मीठे फल जब

बिछे हुए थे मीलों तक...

एक जत्था आया था बच्चों का

हँसता गाता चिल्लाता

और पलक झपकते ही आँखों से

लूट गया मीलों का विस्तार...

धूल उठी और जाते जत्थे की

बस गूँज रह गयी कानों में...
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लूट का हिस्सा मैं नहीं लेता के मैं कोई लूटेरा थोड़ी ही हूँ,
मुझको जाने किसने लूटा और ये कह गया के: "क्या लेकर आये थे और क्या लेकर जाओगे ?"

Saturday, February 11, 2012

बेखबर वक़्त से चला कोई

बेखबर वक़्त से चला कोई 

रूह की आग में जला कोई

(Unknown of the realities, someone has decided to move on. Someone is buring in the fire of his own self.)



सारा दिन साथ कोई देता है

साया है या के है मिला कोई

(The one who walk by in the day time, is he a friend or just the shadow of the self.)



दर्द का ये अजब ही आलम है

हर घड़ी चुभती है खला कोई





कौन पूछेगा ये धुवाँ कैसा

क्यूँ यहाँ राख तक जला कोई

(When the body burns (after death) who will wonder about the fumes in the air? Who will ask why had someone to walk so long and burn till the ashes?)



लोग कहते हैं गम छिपाने को

गैर है क्या यहाँ भला कोई

(People suggest to hide the pain. Wonder, is this a crowd of strangers!)



जो  तुझे रात दिन जगाती है

होगी 'चक्रेश' वो बला कोई

(The unknown desire that leaves me sleepless, it must a (new) misery O'Chakresh.)

Friday, February 10, 2012

क्या नहीं जानता हद्द-ऐ-तन्हाई को

क्या नहीं जानता हद्द-ऐ-तन्हाई को

एक रिश्ता मगर फिर भी भारी लगे

कुछ कमी सी रही दिल के बाज़ार में

हर गली - हर शहर कारोबारी लगे


उतारता रह गया जन्म के हर करम

सोचता रह गया मैं यहाँ क्यूँ भला

कौन मुझमें समाया है mere siwa

कौन इतना हैराँ - परेशान है

एक पल को अगर ये भी मैं मान लूं

किसी विधाता का पुत्र हर इंसान है

तोभी कैसे ये गुत्थी khule tum kaho

क्यूँ ये hasti 'असल' से ही अनजान है

किस बड़े काम के ख़त्म होने तलक

यूँही चलता रहेगा ये तनहा सफ़र

'चक्रेश' संजीदगी की तरफ बढ़ रहा

एक प्यारी हंसी भी क्यूँ भारी लगे

Tuesday, February 7, 2012

और मत पूछना तबीयत को

और मत पूछना तबीयत को, बेवजह नाम याद आयेंगे..
फिर सजाओगे महफ़िलें जब भी, टूटते जाम याद आयेंगे

देखें किस लहजा दगा मिलता है, मेरे पीछे रकीबों तुम्हे
जब कभी जिक्र-ऐ-उल्फत होगाफ़क़त अंजाम याद आयेंगे

Saturday, February 4, 2012

आज दुखती रग पे खंजर रख रहा हूँ

आज दुखती रग पे खंजर रख रहा हूँ
फिर कसौटी पर सिकंदर रख रहा हूँ

पूछता था वक़्त वादों के वज़न
मैं तराजू पर समंदर रख रहा हूँ

कागजों की हैसियत इतनी नहीं
आसुओं के सैलाब अन्दर रख रहा हूँ 


ऐसे भी तो दिन आयेंगे

 ऐसे भी तो दिन आयेंगे, बिलकुल तनहा कर जाएँगे रोयेंगे हम गिर जाएँगे, ख़ामोशी में पछतायेंगे याद करेंगे बीती बातें ख़ुशियों के दिन  हँसती रातें...