अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Monday, September 27, 2010
शाम रिन्दों ने हमको पिलाया बहुत
शाम रिन्दों ने हमको पिलाया बहुत
हौसला टूटे दिल को दिलाया बहुत
हम भी पीते रहे,
घाव सीते रहे
भूल हम ना सके फिर भी उनको कभी
देखो होता है वो
होना होता है जो
मिल ना पाये दो दिल मिलाया बहुत
सजती दुल्धन कहीं
खूबसूरत कोई
जैसे अम्बर से उतरी हो कमसिन परी
आखों में है उसकी
बस मूरत यही
ना टूटे ये मूरत हिलाया बहुत
ऐसे देखो कभी
ऐसा होता है भी
फूल गुलशन में खिलता बिखर जाता है
फिर भी दुखता है मन,
क्यूँ उस फूल प़र
खिल पाया ना जिसको खिलाया बहुत
जाम छलका किये
रात कटती रही
खुद को खोने का हमको गुमाँ हो गया
जाने किस सख्स से
हमने दिल की कही
होश आया जब उसने हिलाया बहुत
शाम रिन्दों ने हमको पिलाया बहुत.....................
Saturday, September 18, 2010
पत्थर का टुकड़ा
एक पहाड़ की चोटी
सदियों से इक ऊचाई पर टिक कर
लगातार खुला आसमान देखती आई है
और साथ ही नीचे वादी में बहते
तेज धार पानी की उथल पुथल को भी
आज अचना धरती के नीचे हुए हल्की सी गतिविधि से
सतेह पे बड़ा भूचाल आया था
और वो चोटी पहाड़ से टूट कर
घाटी में लुढ़कती ठोकर खाती आ गिरी
गिरते समय एक पल को खुला आसमान दीखता
और दूसरे पल नीचे जल का तेज़ प्रवाह
सदियों का भूत, वर्मान के कुछ क्षणों में परत दर परत खुलता चला गया
और वो पत्थर का टुकड़ा लुढ़कता चला गया
लुढ़कता चला गया
सदियों से इक ऊचाई पर टिक कर
लगातार खुला आसमान देखती आई है
और साथ ही नीचे वादी में बहते
तेज धार पानी की उथल पुथल को भी
आज अचना धरती के नीचे हुए हल्की सी गतिविधि से
सतेह पे बड़ा भूचाल आया था
और वो चोटी पहाड़ से टूट कर
घाटी में लुढ़कती ठोकर खाती आ गिरी
गिरते समय एक पल को खुला आसमान दीखता
और दूसरे पल नीचे जल का तेज़ प्रवाह
सदियों का भूत, वर्मान के कुछ क्षणों में परत दर परत खुलता चला गया
और वो पत्थर का टुकड़ा लुढ़कता चला गया
लुढ़कता चला गया
अयोध्या
मैं प्रतिमा हूँ
मैं प्रतिमा हूँ
प्रतिमा हूँ मैं राम की
मैं प्रतिमा हूँ
मैं प्रतिमा हूँ
बोलो मैं किस काम की ?
न तू मुझसे पूछे है
न कहता है मन की बात
क्या करूँ जान के तू पंडित है
जब मुझसे ही है तेरी जात
हर रोज़ सजा कर थाल आरती की
जाने क्या जप जाता है
दिन में तू प्रशाद चढ़ाता
रात बैठ खुद खाता है
ये न कह की मुझमे तुने
राम को कहीं देखा है
सच और झूठ के बीच में प्यारे
एक हल्की सी रेखा है
अपराध नहीं तेरा जो तूने
भक्त जनों को ज्ञान दिया
मुझ पाषाण की मूरत को तूने
इतना उच्च स्थान दिया
बस डरता हूँ मुझ जैसा ही
तू पत्थर न हो जाए
जलता हो अयोध्या में मस्जिद
और तू मंदिर में सो जाए
मैं प्रतिमा हूँ
प्रतिमा हूँ मैं राम की
मैं प्रतिमा हूँ
मैं प्रतिमा हूँ
बोलो मैं किस काम की ?
न तू मुझसे पूछे है
न कहता है मन की बात
क्या करूँ जान के तू पंडित है
जब मुझसे ही है तेरी जात
हर रोज़ सजा कर थाल आरती की
जाने क्या जप जाता है
दिन में तू प्रशाद चढ़ाता
रात बैठ खुद खाता है
ये न कह की मुझमे तुने
राम को कहीं देखा है
सच और झूठ के बीच में प्यारे
एक हल्की सी रेखा है
अपराध नहीं तेरा जो तूने
भक्त जनों को ज्ञान दिया
मुझ पाषाण की मूरत को तूने
इतना उच्च स्थान दिया
बस डरता हूँ मुझ जैसा ही
तू पत्थर न हो जाए
जलता हो अयोध्या में मस्जिद
और तू मंदिर में सो जाए
Thursday, September 16, 2010
फासला क्यूँ हो
ता उम्र जिल्लत गुमनामी रहा तेरा नसीब
तुझे खुल्द का हौसला क्यूँ हो ?
गर शाहीन तू मज़हब है उड़ान तेरा
आसियान तेरा ये घोंसला क्यूँ हो ?
खुदा परस्ती मेरी बुरी अब तू बता
लहू में डूबा काबा-ओ-कर्बला क्यूँ हो ?
ईसा या मुहम्मद से हो तो हो ताल्लुख तेरा
इंजील गीता कुरान में फासला क्यूँ हो ?
ये रस्म बहुत थी जहाँ में इक बार आने की
आने जाने का ये सिलसिला क्यूँ हो ?
अपनी गली में जो रहता हूँ अकेला
हर शख्स को मुझसे शिकवा गिला क्यूँ हो ?
तुझे खुल्द का हौसला क्यूँ हो ?
गर शाहीन तू मज़हब है उड़ान तेरा
आसियान तेरा ये घोंसला क्यूँ हो ?
खुदा परस्ती मेरी बुरी अब तू बता
लहू में डूबा काबा-ओ-कर्बला क्यूँ हो ?
ईसा या मुहम्मद से हो तो हो ताल्लुख तेरा
इंजील गीता कुरान में फासला क्यूँ हो ?
ये रस्म बहुत थी जहाँ में इक बार आने की
आने जाने का ये सिलसिला क्यूँ हो ?
अपनी गली में जो रहता हूँ अकेला
हर शख्स को मुझसे शिकवा गिला क्यूँ हो ?
Tuesday, September 14, 2010
यहाँ ठेस लगाती है दिल टूटता है
मुझे रास न आया ये खेल यारों
यहाँ चोट लगती है दिल टूटता है
ज़रा भी न भाया ये खेल यारों
यहाँ ठेस लगती है दिल टूटता है
ये आखें तो देखें बस मासूम सपने
मंदिर जोड़े जो भी हाथ अपने
तुम ही कहो वो क्या मांगता है-२
एक बच्चा लड़कपन से पाए जवानी
जवानी बन जाए एक करूड़ कहानी
तुम ही कहो वो क्या मांगता है -२
बागीचे में बाबा फूलों से भंवरे उड़ाता
थक जाता हांफता फिर सुस्ताता
तुम ही कहो वो क्या मांगता है -२
कर्म तुला पे झूलता तराजू पुण्य पाप का
समझ न आये मुझे हिसाब इसके माप का
विरासत में पाया ये खेल यारों
मुझे रास न आया ये खेल यारों
यहाँ घाव भरता है फिर फूटता है
यहाँ ठेस लगाती है दिल टूटता है
यहाँ चोट लगती है दिल टूटता है
ज़रा भी न भाया ये खेल यारों
यहाँ ठेस लगती है दिल टूटता है
ये आखें तो देखें बस मासूम सपने
मंदिर जोड़े जो भी हाथ अपने
तुम ही कहो वो क्या मांगता है-२
एक बच्चा लड़कपन से पाए जवानी
जवानी बन जाए एक करूड़ कहानी
तुम ही कहो वो क्या मांगता है -२
बागीचे में बाबा फूलों से भंवरे उड़ाता
थक जाता हांफता फिर सुस्ताता
तुम ही कहो वो क्या मांगता है -२
कर्म तुला पे झूलता तराजू पुण्य पाप का
समझ न आये मुझे हिसाब इसके माप का
विरासत में पाया ये खेल यारों
मुझे रास न आया ये खेल यारों
यहाँ घाव भरता है फिर फूटता है
यहाँ ठेस लगाती है दिल टूटता है
Monday, September 6, 2010
याद बहुत वो आती है
वो लड़की सुन्दर श्यामल सी
भोली सी पगली वो कोमल सी
सारी रात जगाती है
याद बहुत वो आती है
पावनता की वो परिभाषा
जीवन जीने की वो आशा
ख़्वाबों में मुस्काती है
याद बहुत वो आती है
बोली की जैसे धुन वीना की
बालों में खुशबू उसके हीना की
जाने क्या कह जाती है
याद बहुत वो आती है
सावन आये बरखा बरसे
उसके रूप को आँखें तरसे
हाय ! कितना मुझको सताती है
याद बहुत वो आती है
भोली सी पगली वो कोमल सी
सारी रात जगाती है
याद बहुत वो आती है
पावनता की वो परिभाषा
जीवन जीने की वो आशा
ख़्वाबों में मुस्काती है
याद बहुत वो आती है
बोली की जैसे धुन वीना की
बालों में खुशबू उसके हीना की
जाने क्या कह जाती है
याद बहुत वो आती है
सावन आये बरखा बरसे
उसके रूप को आँखें तरसे
हाय ! कितना मुझको सताती है
याद बहुत वो आती है
Thursday, September 2, 2010
किस्तों में आया बचपन
किस्तों में आया बचपन
किस्तों में मेरी जवानी
कतरे लहू के टपके
आँखों से बन के पानी
किसने किया था सौदा
मेरी ज़िन्दगी का जाने
रद्दी में बिक चली है
ये उम्र के कहानी
ऐ दिल नहीं खबर थी
शहर का हाल ऐसा होगा
अब याद आ रही हैं
गलियाँ वो पुरानी
अपने बाद फिर ना होगा
चर्चा कहीं हमारा
इक सांस आखिरी फिर
ना होगी कोई निशानी
मुझको नहीं है फिर भी
शिकवा किसी से ऐ दिल
तकलीफ दे रही है
ये सांस की रवानी
नादाँ हूँ मैं शायद
मुझको खबर नहीं है
"चक्रेश" हो गया पागल
या दुनिया हुई दीवानी.....
किस्तों में मेरी जवानी
कतरे लहू के टपके
आँखों से बन के पानी
किसने किया था सौदा
मेरी ज़िन्दगी का जाने
रद्दी में बिक चली है
ये उम्र के कहानी
ऐ दिल नहीं खबर थी
शहर का हाल ऐसा होगा
अब याद आ रही हैं
गलियाँ वो पुरानी
अपने बाद फिर ना होगा
चर्चा कहीं हमारा
इक सांस आखिरी फिर
ना होगी कोई निशानी
मुझको नहीं है फिर भी
शिकवा किसी से ऐ दिल
तकलीफ दे रही है
ये सांस की रवानी
नादाँ हूँ मैं शायद
मुझको खबर नहीं है
"चक्रेश" हो गया पागल
या दुनिया हुई दीवानी.....
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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(One of the four topics for essay from UPSC paper 2012) Sharaabiyon ko akeedat hai tumse, jo tu pilade to paani sharaab ho jaaye Jis...