ता उम्र जिल्लत गुमनामी रहा तेरा नसीब
तुझे खुल्द का हौसला क्यूँ हो ?
गर शाहीन तू मज़हब है उड़ान तेरा
आसियान तेरा ये घोंसला क्यूँ हो ?
खुदा परस्ती मेरी बुरी अब तू बता
लहू में डूबा काबा-ओ-कर्बला क्यूँ हो ?
ईसा या मुहम्मद से हो तो हो ताल्लुख तेरा
इंजील गीता कुरान में फासला क्यूँ हो ?
ये रस्म बहुत थी जहाँ में इक बार आने की
आने जाने का ये सिलसिला क्यूँ हो ?
अपनी गली में जो रहता हूँ अकेला
हर शख्स को मुझसे शिकवा गिला क्यूँ हो ?
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(One of the four topics for essay from UPSC paper 2012) Sharaabiyon ko akeedat hai tumse, jo tu pilade to paani sharaab ho jaaye Jis...
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