ढाई सौ ग्राम सपने
आधा दर्जन सवालों के साथ
दीवार पर गड़ी खूँटी से लटका गया था कल
आज जा कर देखा तो
मीठे सपनों में चींटियाँ लगी हुई थीं
और सवालों में घुन |
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Sunday, January 30, 2011
Thursday, January 20, 2011
बड़ी देर से हम लिए हाथ में दिल, जिन्हें ढूँढते थे वो आयें तो ऐसे
बड़ी देर से हम लिए हाथ में दिल, जिन्हें ढूँढते थे वो आयें तो ऐसे
शरमसार होकर निगाहें चुरा लीं, उन्हें हाल-ऐ-दिल अब सुनायें तो कैसे
दुपट्टे के कोने में उनगली लपेटे, गज़रे की खुशबू से भर दीं फिजायें
इज़हार-ऐ-मुहब्बत निगाहों में लेकिन, लरज़ते लबों को शिकायत हो जैसे
नहीं होता दिल पर काबू किसी का, दबे पाँव आकर घर कर गए वो
कोई और चेहरा अब जी को न भाये, कहीं और दिल को लगायें तो कैसे
शरमसार होकर निगाहें चुरा लीं, उन्हें हाल-ऐ-दिल अब सुनायें तो कैसे
दुपट्टे के कोने में उनगली लपेटे, गज़रे की खुशबू से भर दीं फिजायें
इज़हार-ऐ-मुहब्बत निगाहों में लेकिन, लरज़ते लबों को शिकायत हो जैसे
नहीं होता दिल पर काबू किसी का, दबे पाँव आकर घर कर गए वो
कोई और चेहरा अब जी को न भाये, कहीं और दिल को लगायें तो कैसे
Wednesday, January 12, 2011
तो सोचा जाए उनसे मिलने की
जख्म भरे तो सोचा जाए उनसे मिलने की
सांस थमे तो सोचा जाए उनसे मिलने की
धागे सारे रिश्तों के मैं उलझा बैठा हूँ
गाँठ खुले तो सोचा जाए उनसे मिलने की
जीवन रुका पड़ा है कबसे उन्ही सवालों पर
बात बढ़े तो सोचा जाए उनसे मिलने की
अब पालनें बाँझन आंखों के सूने रहते हैं
ख्वाब पले तो सोचा जाए उनसे मिलने की
बगिया सूनी है बिन माली फूल नहीं कोई
कँवल खिले तो सोचा जाए उनसे मिलने की
सांस थमे तो सोचा जाए उनसे मिलने की
धागे सारे रिश्तों के मैं उलझा बैठा हूँ
गाँठ खुले तो सोचा जाए उनसे मिलने की
जीवन रुका पड़ा है कबसे उन्ही सवालों पर
बात बढ़े तो सोचा जाए उनसे मिलने की
अब पालनें बाँझन आंखों के सूने रहते हैं
ख्वाब पले तो सोचा जाए उनसे मिलने की
बगिया सूनी है बिन माली फूल नहीं कोई
कँवल खिले तो सोचा जाए उनसे मिलने की
Friday, January 7, 2011
अब गिरनी है तब गिरनी है
टप टप करके गिरती बूदें
चिटक चिटक झड़ती दीवारें
धूल धूल हुआ हर पर्दा
खोखली पड़ गयीं मीनारें
गाँव की वो मज़ार पुरानी
सदियों से जानी पहचानी
अब गिरनी है तब गिरनी है
दीवारें हैं सब ढेह जानी
हरी काई स्याह हो गयी
गुम्बज़ की वो चमक धो गयी
चौखट पड़ी रह गयी अकेली
मेलों का वो बोझ सह गयी
अब गिरनी है तब गिरनी है
यादें भी हैं सब खो जानी
चिटक चिटक झड़ती दीवारें
धूल धूल हुआ हर पर्दा
खोखली पड़ गयीं मीनारें
गाँव की वो मज़ार पुरानी
सदियों से जानी पहचानी
अब गिरनी है तब गिरनी है
दीवारें हैं सब ढेह जानी
हरी काई स्याह हो गयी
गुम्बज़ की वो चमक धो गयी
चौखट पड़ी रह गयी अकेली
मेलों का वो बोझ सह गयी
अब गिरनी है तब गिरनी है
यादें भी हैं सब खो जानी
Wednesday, January 5, 2011
अपराध बोध
भिखारन रात मांगती रही मेरी आँखों से
एक नए स्वप्न की भीख
मैं अकिंचन पलक बंद कर
दे गया फिर वही दो बूँद अश्रू के
रात चौखट पर भूखी बैठी रही बिलखती
फिर चौकीदार सवेरा लात मार
खदेड़ आया बिचारी को
कहीं किसी और गली में जा भटकने की खातिर...
अपराध बोध रह गया इक मन में
हाथ में लिए निवाला सच का
सोच रहा हूँ कैसे निगलूँ ?
झूट मूठ का कोई सपना
माटी के पुतले सा भी होता
टूट जाए तो भी क्या गम है....
सच,
.....कितना भारी होता है ऐसे
हर रोज़ रात अभागन को
भूखे पेट सुला देना ..........
एक नए स्वप्न की भीख
मैं अकिंचन पलक बंद कर
दे गया फिर वही दो बूँद अश्रू के
रात चौखट पर भूखी बैठी रही बिलखती
फिर चौकीदार सवेरा लात मार
खदेड़ आया बिचारी को
कहीं किसी और गली में जा भटकने की खातिर...
अपराध बोध रह गया इक मन में
हाथ में लिए निवाला सच का
सोच रहा हूँ कैसे निगलूँ ?
झूट मूठ का कोई सपना
माटी के पुतले सा भी होता
टूट जाए तो भी क्या गम है....
सच,
.....कितना भारी होता है ऐसे
हर रोज़ रात अभागन को
भूखे पेट सुला देना ..........
Tuesday, January 4, 2011
एक शून्य
फिर एक शून्य रख गया, जाता पल मेरी हथेली पर
एक सवाल
एक अनुभव
एक व्योम ...
नसों से रिस रिस कर कुछ खून
जमता गया समझ ki सफ़ेद परत पर
और धीरे धीरे
ह्रदय के कोने पथरीले होना शुरू हो गए ........
फिर एक शून्य रख गया,
जाता पल मेरी हथेली पर
एक सोच
एक मौन
एक चोट
जैसे खींच लिया हो झटके से किसीने
कोई बाल त्वचा का
एक तीस के बाद सम्भलते रोम में
रह गयी है वेदना ki तरंग कोई
एक सवाल
एक अनुभव
एक व्योम ...
नसों से रिस रिस कर कुछ खून
जमता गया समझ ki सफ़ेद परत पर
और धीरे धीरे
ह्रदय के कोने पथरीले होना शुरू हो गए ........
फिर एक शून्य रख गया,
जाता पल मेरी हथेली पर
एक सोच
एक मौन
एक चोट
जैसे खींच लिया हो झटके से किसीने
कोई बाल त्वचा का
एक तीस के बाद सम्भलते रोम में
रह गयी है वेदना ki तरंग कोई
Sunday, January 2, 2011
जाने क्या-क्या भुला के बैठें हैं
जाने क्या-क्या भुला के बैठें हैं
घर ख़्वाबों का जला के बैठे हैं
कोई रोता है क्यूँ घर के लुटने पर
लोग यहाँ जिंदगी लुटा के बैठे हैं
रह न जाए इक भी ख्वाब जिन्दा
रात को जेहर पिला के बैठे हैं
खींच ले दिन तू चाँदनी की रिदा
दर्द की गर्म रजाई भरा के बैठे हैं
हौसला है चीखे बिना मर जाने का
अपने मुह को हम दबा के बैठे हैं
घर ख़्वाबों का जला के बैठे हैं
कोई रोता है क्यूँ घर के लुटने पर
लोग यहाँ जिंदगी लुटा के बैठे हैं
रह न जाए इक भी ख्वाब जिन्दा
रात को जेहर पिला के बैठे हैं
खींच ले दिन तू चाँदनी की रिदा
दर्द की गर्म रजाई भरा के बैठे हैं
हौसला है चीखे बिना मर जाने का
अपने मुह को हम दबा के बैठे हैं
सुहाने पल की ढेरों यादें
सुना था जिन दीवारों से चिपककर चलती हैं कुछ पुरानी यादें
और मिलता है जहाँ से मिर्जा असद उल्लाह खाँ 'ग़ालिब' का पता ..
मैं आज उन्ही चूड़ी वालन की गलियों से होकर आया हूँ
लाल किला जामा मस्जिद पुरानी दिल्ली के दिल से चुरा लाया हूँ
पुरे जीवन काल के लिए एक सुहाने पल की ढेरों यादें ....
और मिलता है जहाँ से मिर्जा असद उल्लाह खाँ 'ग़ालिब' का पता ..
मैं आज उन्ही चूड़ी वालन की गलियों से होकर आया हूँ
लाल किला जामा मस्जिद पुरानी दिल्ली के दिल से चुरा लाया हूँ
पुरे जीवन काल के लिए एक सुहाने पल की ढेरों यादें ....
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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(One of the four topics for essay from UPSC paper 2012) Sharaabiyon ko akeedat hai tumse, jo tu pilade to paani sharaab ho jaaye Jis...