Thursday, January 20, 2011

बड़ी देर से हम लिए हाथ में दिल, जिन्हें ढूँढते थे वो आयें तो ऐसे

बड़ी देर से हम लिए हाथ में दिल, जिन्हें ढूँढते थे वो आयें तो ऐसे

शरमसार होकर निगाहें चुरा लीं, उन्हें हाल-ऐ-दिल अब सुनायें तो कैसे



दुपट्टे के कोने में उनगली लपेटे, गज़रे की खुशबू से भर दीं फिजायें

इज़हार-ऐ-मुहब्बत निगाहों में लेकिन, लरज़ते लबों को शिकायत हो जैसे



नहीं होता दिल पर काबू किसी का, दबे पाँव आकर घर कर गए वो

कोई और चेहरा अब जी को न भाये, कहीं और दिल को लगायें तो कैसे

2 comments:

अरुण अवध said...

सुन्दर ,सराहनीय लेखन,बधाई !

shephali said...

ek naari ka sundar aur sahaj chitran bahut acha laga

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