Ganga-ghat Manikanika par
kab lapate dam leti hain
ek bhuji to raakh bani fir
duji dhoo dhoo karti hain
antim satya yahi jeevan ka
sab raakh raakh ho jaayega
kya lekar tu aaya tha aur
kya lekar tu jaayega ?
rishate naate tere banaye
tune sajaaya ghar sansaar
kinkartavya vimood hua kyun
bhool gaya kya Geeta saar ?
aisa kya tha daav pe tere
jo paason se haar gaya
chausar teri daav bhi tera
kaun tujhe fir maar gaya??
jis din raahi dekh sakega
antar mein sab paa lega
ashroo nahi honge aankhon mein
hans lega tu gaa lega
chalata ja ke chalana jeevan
jeevan ka tu hissa hai
ek adhoori kavita ka tu
chota sa ik kissa hai
jod tod ginati gadna mein
samay vyarth na kar raahi
chalata ja tu aage aage
ginata hai sab eeswar raahi
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Monday, February 28, 2011
Saturday, February 26, 2011
मेरी परछाइयाँ
मेरी परछाइयाँ
मेरी आवाजें
मेरा वजूद
मेरे किस्से
मेरी बातें
बताओ कब तक मेरे होकर रह पाओगे
बताओ कब तक प्यार मुझे कर पाओगे
मेरे गम
मेरे दर्द
मेरी सोच
मेरी समझ
मेरी रातें
बताओ कब तक साथ मेरे चल पाओगे
बताओ कब किस मोड़ पर मुद जाओगे
हंसू कैसे
कहूं अब क्या
कोई कविता
कोई किस्सा
नहीं हैं कोई गज़लें
बताओ तुम ये खामोशी क्या कभी सुन पाओगे
बिना मेरे कहे कुछ भी क्या तुम समझ सब जाओगे
मेरी आवाजें
मेरा वजूद
मेरे किस्से
मेरी बातें
बताओ कब तक मेरे होकर रह पाओगे
बताओ कब तक प्यार मुझे कर पाओगे
मेरे गम
मेरे दर्द
मेरी सोच
मेरी समझ
मेरी रातें
बताओ कब तक साथ मेरे चल पाओगे
बताओ कब किस मोड़ पर मुद जाओगे
हंसू कैसे
कहूं अब क्या
कोई कविता
कोई किस्सा
नहीं हैं कोई गज़लें
बताओ तुम ये खामोशी क्या कभी सुन पाओगे
बिना मेरे कहे कुछ भी क्या तुम समझ सब जाओगे
कभी यूँही किसी मोड़ पर
कभी यूँही किसी मोड़ पर
रुक कर हंस देना फ़कीर
जिंदगी इतनी भी गम जदा तो नहीं
कम नसीबी है लाचारी है
नाउम्मीदी नाकामी है मगर
हार कर रो देना जीने की कोई हसीं अदा तो नहीं
रुक कर हंस देना फ़कीर
जिंदगी इतनी भी गम जदा तो नहीं
कम नसीबी है लाचारी है
नाउम्मीदी नाकामी है मगर
हार कर रो देना जीने की कोई हसीं अदा तो नहीं
Sunday, February 20, 2011
एक चोट
फिर एक शून्य रख गया, जाता पल मेरी हथेली पर
एक सवाल
एक अनुभव
एक व्योम ...
नसों से रिस रिस कर कुछ खून
जमता गया समझ ki सफ़ेद परत पर
और धीरे धीरे
ह्रदय के कोने पथरीले होना शुरू हो गए ........
फिर एक शून्य रख गया,
जाता पल मेरी हथेली पर
एक सोच
एक मौन
एक चोट
जैसे खींच लिया हो झटके से किसीने
कोई बाल त्वचा का
एक tees के बाद सम्भलते रोम में
रह गयी है वेदना ki तरंग कोई
एक सवाल
एक अनुभव
एक व्योम ...
नसों से रिस रिस कर कुछ खून
जमता गया समझ ki सफ़ेद परत पर
और धीरे धीरे
ह्रदय के कोने पथरीले होना शुरू हो गए ........
फिर एक शून्य रख गया,
जाता पल मेरी हथेली पर
एक सोच
एक मौन
एक चोट
जैसे खींच लिया हो झटके से किसीने
कोई बाल त्वचा का
एक tees के बाद सम्भलते रोम में
रह गयी है वेदना ki तरंग कोई
Thursday, February 17, 2011
मेरी रुसवाई होने वाली है
मेरी रुसवाई होने वाली है
हर नज़र हुई सवाली है
हो न हो आज ही मरूंगा मैं
ये सिआह रात बड़ी काली है
सब राज़-ओ-परिंदे उड़ गए देखो
पिंजरा-ऐ-दिल अब तो खाली है
वो फिर भी तुहमत लगाता ही गया
मेरा यार अब भी सवाली है
चली है इश्क पर कलम जब भी
'चक्रेस' मुलजिम हुआ बवाली है
हर नज़र हुई सवाली है
हो न हो आज ही मरूंगा मैं
ये सिआह रात बड़ी काली है
सब राज़-ओ-परिंदे उड़ गए देखो
पिंजरा-ऐ-दिल अब तो खाली है
वो फिर भी तुहमत लगाता ही गया
मेरा यार अब भी सवाली है
चली है इश्क पर कलम जब भी
'चक्रेस' मुलजिम हुआ बवाली है
Wednesday, February 16, 2011
जमा मस्जिद
जमा मस्जिद के सामने देखा एक
बूड़े बाबा को ठेले पर बेकरी बिस्किट बनाते हुए
कैसे चुप चाप भीड़ से अनजान बने
उम्र के सभी पड़ाव और उनतक साथ चले अनुभवों को
अपने चहरे की सिलवटों में समेटे
मैदे सूजी घी और चीने से बने चूरे को
अंगीठी में तपा मीठे स्वाद से भरे बिस्किट बनाते हैं ...
रोज़ मर्रा की वही खबरें,
दो - चार आने पर आग उबलते चाँदनी chauk के बाज़ार
और नव जवाने के वही बिगड़े तेवर, आग उबलते सवाल
कैसे इन सब में रह कर
इन सब से दूर यहाँ खुदा के दर पर ही
पा लिए है इन बूड़े बाबा ने
ज़िन्दगी जीने का एक हसीं मकसद
उल्गलिया अंगीठी की राख से भले ही काली हो जाती हैं
मगर हर एक बिस्किट सोने के सिक्कों सा चमकदार बन निकलता है
समय के साथ हिन्दू मुसल्ल्मानों में दरार दे गए सियासत वाले
और उन्छुवा नहीं हूँ मैं shaayad
शायद इस लिए एक बार मस्जिद तक जाती ऊंची सीढ़ियों
से दर gaya tha मैं
पर जाने इन बाबा की आँखों में तैरते जीवन के सभी मंजरों में कहाँ
खुद को देख लिया मैंने...
प्यार से रचे एक एक बिस्किट कह गए मुझसे
खुदा के सभी तलिस्माई किस्से
और मिटा गए ह्रदय की सतेह से सभी निरर्थक रेखाएं
बूड़े बाबा को ठेले पर बेकरी बिस्किट बनाते हुए
कैसे चुप चाप भीड़ से अनजान बने
उम्र के सभी पड़ाव और उनतक साथ चले अनुभवों को
अपने चहरे की सिलवटों में समेटे
मैदे सूजी घी और चीने से बने चूरे को
अंगीठी में तपा मीठे स्वाद से भरे बिस्किट बनाते हैं ...
रोज़ मर्रा की वही खबरें,
दो - चार आने पर आग उबलते चाँदनी chauk के बाज़ार
और नव जवाने के वही बिगड़े तेवर, आग उबलते सवाल
कैसे इन सब में रह कर
इन सब से दूर यहाँ खुदा के दर पर ही
पा लिए है इन बूड़े बाबा ने
ज़िन्दगी जीने का एक हसीं मकसद
उल्गलिया अंगीठी की राख से भले ही काली हो जाती हैं
मगर हर एक बिस्किट सोने के सिक्कों सा चमकदार बन निकलता है
समय के साथ हिन्दू मुसल्ल्मानों में दरार दे गए सियासत वाले
और उन्छुवा नहीं हूँ मैं shaayad
शायद इस लिए एक बार मस्जिद तक जाती ऊंची सीढ़ियों
से दर gaya tha मैं
पर जाने इन बाबा की आँखों में तैरते जीवन के सभी मंजरों में कहाँ
खुद को देख लिया मैंने...
प्यार से रचे एक एक बिस्किट कह गए मुझसे
खुदा के सभी तलिस्माई किस्से
और मिटा गए ह्रदय की सतेह से सभी निरर्थक रेखाएं
Wednesday, February 9, 2011
My vision for my nation and its people
I can think of 10 points as of 9th Feb'2011. I know that the points are not new to us, but I feel we are a generation a lot different than that of our forefathers. I have a dying hope to see India as it was (and is) meant to be.
10 point:
1. Agricultural reforms (improvement in farmers' standard of living)
2. Educational reform (let no Indian student look west for higher education)
3. Energy Self Sufficiency (use of wind energy and minimization of power theft)
4. Ecological balance and environment awareness in general public.
5. Internal security (one sixth of India lives in regions having constant conflicts)
6. Women equality
7. Reservation to be on the basis of financial constraints rather than on caste/creed.
8. Politics to be made a desirable profession for those who deserve.
9. Revival of ancient art and culture to save the cultural heritage
10. Reforms in judiciary to make it faster and more efficient.
(above all an understanding of Kartavya in every soul)
Let not just negativity set in every young mind of my mother land. May not every one turn their face to avoid the rotting smell of almost system in our present day India. I believe and I find it a reason worth living for.
.
P.S.: This is the first article which covers my vision in few consise points. I am busy working out the plan on which I can move on and bring my vision to reality.
10 point:
1. Agricultural reforms (improvement in farmers' standard of living)
2. Educational reform (let no Indian student look west for higher education)
3. Energy Self Sufficiency (use of wind energy and minimization of power theft)
4. Ecological balance and environment awareness in general public.
5. Internal security (one sixth of India lives in regions having constant conflicts)
6. Women equality
7. Reservation to be on the basis of financial constraints rather than on caste/creed.
8. Politics to be made a desirable profession for those who deserve.
9. Revival of ancient art and culture to save the cultural heritage
10. Reforms in judiciary to make it faster and more efficient.
(above all an understanding of Kartavya in every soul)
Let not just negativity set in every young mind of my mother land. May not every one turn their face to avoid the rotting smell of almost system in our present day India. I believe and I find it a reason worth living for.
.
P.S.: This is the first article which covers my vision in few consise points. I am busy working out the plan on which I can move on and bring my vision to reality.
Monday, February 7, 2011
ऐ मेरे दर्द-ऐ सुखन
ऐ मेरे दर्द-ऐ सुखन
तू न बे-बेहर न बेवज़न
एक ही तू है तमाम दुनिया में
जो जानता मेरी साँसों की बेहर
औ मेरे अश्कों का वज़न
ऐ मेरे दर्द-ऐ-सुखन
तू न बे-बेहर न बेवज़न
एक ही तू है तमाम दुनिया में
जो जानता मेरी साँसों की बेहर
औ मेरे अश्कों का वज़न
ऐ मेरे दर्द-ऐ-सुखन
Thursday, February 3, 2011
कई बार समझ की सीमा पर
कई बार समझ की सीमा पर
अवाक खड़ा रह जाता हूँ
देख क्षितिज तक फैले तम को
अघात खड़ा रह जाता हूँ
पीछे की तू तू मैं मैं से आगे
छोड़ वर्त्तमान के कोमल धागे
इधर उधर जो मन भागे
हाथ पकड़ बिठाता हूँ
कई बार समझ की सीमा पर
मन उपवन में फूल फूल
लिपटें संग इनके शूल शूल
बाहर देखूं तो बस धूल धूल
अंतरमन की नीरसता को
ताक खड़ा रह जाता हूँ
कई बार समझ की सीमा पर
व्योम धरा का विस्तार कहीं
निःसार सगर संसार कहीं
इस भव सागर के पार कहीं
जाना है चलता जाता हूँ
कई बार समझ की सीमा पर
विधि के पहिये खटर-पटर
कर चिंताओं को तितर-बितर
कुछ कहते हैं अंतर में उतर-उतर
हर कविता में खुद को मैं फिर भी,
ठगा हुआ सा पाता हूँ
कई बार समझ की सीमा पर
-ckh
अवाक खड़ा रह जाता हूँ
देख क्षितिज तक फैले तम को
अघात खड़ा रह जाता हूँ
पीछे की तू तू मैं मैं से आगे
छोड़ वर्त्तमान के कोमल धागे
इधर उधर जो मन भागे
हाथ पकड़ बिठाता हूँ
कई बार समझ की सीमा पर
मन उपवन में फूल फूल
लिपटें संग इनके शूल शूल
बाहर देखूं तो बस धूल धूल
अंतरमन की नीरसता को
ताक खड़ा रह जाता हूँ
कई बार समझ की सीमा पर
व्योम धरा का विस्तार कहीं
निःसार सगर संसार कहीं
इस भव सागर के पार कहीं
जाना है चलता जाता हूँ
कई बार समझ की सीमा पर
विधि के पहिये खटर-पटर
कर चिंताओं को तितर-बितर
कुछ कहते हैं अंतर में उतर-उतर
हर कविता में खुद को मैं फिर भी,
ठगा हुआ सा पाता हूँ
कई बार समझ की सीमा पर
-ckh
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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(One of the four topics for essay from UPSC paper 2012) Sharaabiyon ko akeedat hai tumse, jo tu pilade to paani sharaab ho jaaye Jis...