अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Tuesday, June 28, 2011
मेरी जान लेके देखो
मेरी जान लेके देखो, मेरा भूत कैसा होगा
मैं अभी से जानता हूँ, वो तुम्हारे जैसा होगा
वही खोखली निगाहें, वही भूख हर अदम सी
वही नामुराद चेहरा, कातिल के जैसा होगा
मेरी बाजुओं में कीलें, सूली पे दिन गिनूंगा
सजदे करेंगे ज़ालिम, इक दिन तो ऐसा होगा
Monday, June 27, 2011
वो न मिलें हम क्या करें
हमने पते पर ख़त लिखा,वो न मिलें हम क्या करें;
उनका नहीं है कुछ पता, ये मंजिलें हम क्या करें...
यहाँ कौन जाने अपने गम,कहने को सब अपने ही हैं;
इक वो नहीं जो दरमियाँ,ये महफिलें हम क्या करें...
वो सच ही कहते होंगे के, मौसम बहारों के हैं ये;
कई फूल बगिया में यहाँ, ये न खिलें हम क्या करें...
उनका नहीं है कुछ पता, ये मंजिलें हम क्या करें...
यहाँ कौन जाने अपने गम,कहने को सब अपने ही हैं;
इक वो नहीं जो दरमियाँ,ये महफिलें हम क्या करें...
वो सच ही कहते होंगे के, मौसम बहारों के हैं ये;
कई फूल बगिया में यहाँ, ये न खिलें हम क्या करें...
Saturday, June 25, 2011
कुछ भी नहीं ये कुछ भी नहीं
कोई होता मुझसे कहने को
के कुछ भी नहीं ये कुछ भी नहीं
अभी और भी मंजिलें बाकी हैं
ये कुछ भी नहीं ये कुछ भी नहीं
हर शाम मैं ढलता सूरज सा
और रात विचरता चंदा संग
कोई साथ तो चलता चार कदम
और हंस कर कहता कुछ भी नहीं
इस पार ह्रदय दुःख पाकर भी
हंस लेता जी भर गा लेता
जो सुनता कोई हर कविता को
और अर्थ पूछता कुछ भी नहीं
मैं पूछ रहा हर चहरे से
चिंता कैसी किसका जीवन ?
एक मौन मिला बस उत्तर में
और कुछ भी नहीं कभी कुछ भी नहीं
इक उम्र पड़ी अभी जीने को
इक उम्र देख कर आया हूँ
बड़ी जोर-जोर से बातें की
और दे मैं सका अभी कुछ भी नहीं
कोलाहल चीत्कार शहर की
door धकेले है मुझको
भाग रहा मैं अपनी छाया से,
ढूंढ रहा मैं कुछ भी नहीं, हाँ कुछ भी नहीं
Tuesday, June 7, 2011
अखबार बेंच कर आया हूँ
अखबार बेंच कर आया हूँ
हथियार बेंच कर आया हूँ
आग उबलती खबरों का मैं
बाज़ार बेंच कर आया हूँ
किसने कैसे कितना खाया
किस मंत्री ने कितना पाया
अगले मुख्य चुनावों का मैं
दावेदार बेंच कर आया हूँ
फ़िल्मी जगत की ताज़ी बातें
IPL की जागी रातें
छोटे-बड़े पूंजीपतियों के
कारोबार बेंच कर आया हूँ
गली मुहल्लों के फर्जी कॉलेज
नन्हों को A+ की knowledge
अधनंगी तस्वीरों का मैं
भण्डार बेंच कर आया हूँ
चालीस पन्नों की चालीसा
स्थान सत्य का छोड़ा खाली सा
Real estates, car-agency, flights के
प्रचार बेंच कर आया हूँ
Friday, June 3, 2011
देखेंगे बहारें जाने दो, कब तक रुकते हैं दीवाने
देखेंगे बहारें जाने दो, कब तक रुकते हैं दीवाने............
कुछ देर यहाँ पर महफ़िल है, फिर तो होने हैं वीराने
हैं शोख नज़र के चर्चे आम, गज़लें सारी हैं साकी पर
साकी ही शायर की पूजा, जब तक खुलते हैं मैखाने
कुछ नाम जो होता तो शायद, बगिया-ऐ-मुहब्बत तक जातें
जिन गुंचा-ओ-फिजा में हीर बसे, वहाँ कौन हमे अब पहचाने?
हमसे है शिकायत यारों को, मिलना-जुलना सब बंद हुआ
कुछ वक़्त ही ऐसा है शायद, कैसा है क्यूँ है रब जाने ....
क्या नहीं खबर हमे ऐ लोगों, जो रात मचाया हंगामा
इक बूँद न पी थी ये कहने को, आये हो हमको समझाने...
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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(One of the four topics for essay from UPSC paper 2012) Sharaabiyon ko akeedat hai tumse, jo tu pilade to paani sharaab ho jaaye Jis...