Monday, June 27, 2011

वो न मिलें हम क्या करें

हमने पते पर ख़त लिखा,वो न मिलें हम क्या करें;
उनका नहीं है कुछ पता, ये मंजिलें हम क्या करें...

यहाँ कौन जाने अपने गम,कहने को सब अपने ही हैं;
इक वो नहीं जो दरमियाँ,ये महफिलें हम क्या करें...

वो सच ही कहते होंगे के, मौसम बहारों के हैं ये;
कई फूल बगिया में यहाँ, ये न खिलें हम क्या करें...

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बस इंतज़ार कीजिये ...अच्छी प्रस्तुति

shephali said...

देखा था हमने उनकी आँखों में आंसू का एक कतरा
मेरी नज़र का धोखा था, वो कह गए हम क्या करें

उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही

  उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं  रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा  ख़ुद के हा...