Tuesday, October 25, 2011

ऐसी कोई शाम नहीं

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ऐसी कोई शाम नहीं
जिसपर तेरा नाम नहीं

जाने क्यूँ मदहोश रहूँ
हाथों में तो जाम नहीं

नामाबर तो आते रहें
आते हैं पैगाम नहीं

शाखों को ऐसा झटका
पत्तों को आराम नहीं

चुभता होतो क्यूँ न कहे
ऐ दिल दिल को थाम नहीं

बेमतलब 'चक्रेश' यहाँ
उनको कर बदनाम नहीं

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मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)