वो लिख जो कहना न आसान हो
जो साँसों के ही हो बस दरमियाँ
ऐ दिल जो परदे खिड़कियों से तेरी
ख़्वाबों के झोंकों से रहे हैं लिपट
उनसे छनती किरणों को लिख
तू वो लिख जो कहना न आसान हो
इन किस्सों कसीदों कहकशों में है क्या
ये न होंगे न होंगे इनके निशाँ
तू वो लिख जो कहना न आसान हो
मंजिलों तक पहुंचती रहगुज़र को भी सुन
सांस लेती समंदर की लहेरों को लिख
तू वो लिख जो कहना सा आसान हो
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
मेरे सच्चे शेर
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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2 comments:
शायद यह आसान होता....
सही कहा
जो कहा नहीं जा सके
उसको लिख के बयां करना चाहिए
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