Sunday, August 7, 2011

वो लिख जो कहना न आसान हो

वो लिख जो कहना न आसान हो
जो साँसों के ही हो बस दरमियाँ

ऐ दिल जो परदे खिड़कियों से तेरी
ख़्वाबों के झोंकों से रहे हैं लिपट
उनसे छनती किरणों को लिख
तू वो लिख जो कहना न आसान हो

इन किस्सों कसीदों कहकशों में है क्या
ये न होंगे न होंगे इनके निशाँ
तू वो लिख जो कहना न आसान हो

मंजिलों तक पहुंचती रहगुज़र को भी सुन
सांस लेती समंदर की लहेरों को लिख
तू वो लिख जो कहना सा आसान हो

2 comments:

Arvind kumar said...

शायद यह आसान होता....

shephali said...

सही कहा
जो कहा नहीं जा सके
उसको लिख के बयां करना चाहिए

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