Wednesday, August 31, 2011

अपने ही वादों के, कर्ज़दार हो गए


अपने ही वादों के, कर्ज़दार हो गए

बैठे थें किनारों पे, मजधार हो गए



फसलों के संग आए, खानाबदोश परिंदे

भी

और हमारी मचानों के, दावेदार हो गए



हमने जला डालीं, लिखकर कई गज़लें

वो बेंच राखों को, फनकार हो गए




हम ढूँढते फिरते, खोयी हुई हस्ती

जो भूल गए खुद को, वो पार हो गए



इक दौर गुजरा है, हम थें अजीजों में

इक दौर ये आया, हम लाचार हो गए

5 comments:

vandana gupta said...

वाह गज़ब की भावाव्यक्ति दिल को छू गयी।

vandana gupta said...

विघ्नहर्ता विघ्न हरो
मेटो सकल क्लेश
जन जन जीवन मे करो
ज्योति बन प्रवेश
ज्योति बन प्रवेश
करो बुद्धि जागृत
सबके साथ हिलमिल रहें
देश दुनिया के नागरिक

श्री गणेशाय नम:……गणेश जी का आगमन हर घर मे शुभ हो।

Arvind kumar said...

बहुत ही खूबसूरत...
www.kumarkashish.blogspot.com

Dev said...

Really, awesome poetry.

shephali said...

bahut khb chakresh ji

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