Sunday, November 18, 2012

फिर से वही कहानी



ये नया नया तजुर्बा ये नयी नयी निशानी 
मेरी जिंदगी सुनाये फिर से वही कहानी

तन्हाइयों ने घेरा आकर के उस घड़ी में 
 जब ढूढती थी आँखें यारों की निगेहबानी 


मैं जानता हूँ इक दिन बदलेंगे सब नज़ारे
महफ़िल में जल उठेंगी गज़लें मेरी पुरानी 

जिनको नहीं ख़बर थी हालात की शहर के 
वो पूछते थे मुझसे आँखों में क्यूँ था पानी 

उठकर चला था जब मैं दुनिया को ही बदलने 
उस पल से ही हुयी हैं गलियाँ सभी बेगानी 





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मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)