Wednesday, November 3, 2010

तनहा तन्हा

तनहा तन्हा हमको यहाँ लगने लगा है ये jahan
कैसे कटे अब ये सफ़र, कोई nahi है कारवाँ

साहिल पे गुजार दें अब सोचते हैं ये उमर
मौज-ओ-दरिया प्यार का है दूर हमसे अब वहाँ

(मौज-ओ: 22 दरि:12)

इन गुहरों का अब क्या होगा ले आई जिनको लहर
किसे दूँ तोहफे प्यार के है कौन अपना जान-ऐ-जाँ

इस शाम ने हमको रुलाया फिर अपने उसी सवाल से
आया कहाँ से तू बता? अब जाएगा कह तू कहाँ ?

जब ख़ाक हम हो जाएँ तो आना कफ़न पे तुम सबा
आना न इस रात अभी, साया नहीं कोई यहाँ....

1 comment:

ZEAL said...

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umda gazal !

badhaii.

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मेरे सच्चे शेर

 बड़ा पायाब रिश्ता है मेरा मेरी ही हस्ती से ज़रा सी आँख लग जाये, मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ (पायाब: shallow)