Monday, November 1, 2010

तुमने ऐसा क्या किया

तीरे नज़र का दोष है
मारा मारा फिरे है वो
तुमने ऐसा क्या किया
बेचारा फिरे है

तू दिल-फरेब है यहाँ
महफ़िल सजा रहा
क्या पता किसी सह्रांव में
बेसहारा फिरे है वो


इश्क का कसूर है
कुछ होश नहीं उसे
आप का है करम
नाकारा फिरे है वो

आपने घर सजा लिया
हंस कर रकीब संग
आज तलक आस में
कंवारा फिरे है वो

जाना न मज़ार-ऐ-कैश पे
वो अब नहीं वहाँ
कहते हैं आज कल कहीं
आवारा फिरे है वो

2 comments:

Dev said...

चक्रेश जी ,आपकी लेखनी की उत्त्कृष्टता और सततता सराहनीय है अपनी निज व्यस्तता के बाद इस ख़ूबसूरती से हिंदी जगत आलोकित करना प्रशंसनीय है
इश्वर आपकी लेखनी की स्याही को सदाव विभिन्न रंगों से सजाता रहे

chakresh singh said...

Dhanyaavad Dev ji,,sach mein jeevan kaafi vyast ho gaya hai...aap logon ka protsaahan hi hai ke kuch likh paata hun...

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