शोर
मज़ाक
ठठोल
झूठ
आडम्बर
स्वार्थ
ये शब्द नहीं आईने हैं
ऐ इतिहास पड़ने वालों
अपना इतिहास क्या ये होगा ?
भूख
शोषण
क्रूरता
कमजोरी
धोखा
ये शब्द नहीं आईने हैं
ऐ कविमन कविवर जानो
अगली कविता में क्या होगा ?
अंधी भीड़
हाथ उठाये नाचते लोग
तेज़ रफ़्तार गाड़ियां
पर्दों पर चमचमाते सितारे
जीवन से दूर काल्पनिक एक दुनिया
पैसे की हवस
ज्ञान का इक दो राहे पे
असमंजस में पड़ जाना
दरत हूँ मैं...
हाँ! डरता हूँ मैं
ऐ धरती के प्यारे बच्चों
की अगली मुठ्ठी में क्या होगा ? (*नन्हे मुन्हे बचों तेरी मुठ्ठी में क्या है...)
बड़ा शहर या कारगर
अपनी जरूरतें या आवारा मन
दासत्व स्वीकार कर चुकी
ठंढी पड़ी धमनियां
डरता हूँ
हाँ! डरता हूँ मैं
ऐ प्यारे मेरे लोगों
के आगे न जाने क्या होगा?
मूक
संवेदनहीन
कीड़े
ये शब्द नहीं आईने हैं
ऐ ज़मीन पर रेंगने वाले
तेरा न जानेक या होगा ?
अंतिम दिन जीवन के यदि ये
पीर हृदय की रह जाए
के दौड़-धूप में बीत गए पल
प्रियतम से कुछ ना कह पाएँ
Friday, December 31, 2010
Thursday, December 30, 2010
यूँही मुझको चुप रहने की आदत पड़ी पुरानी है
यूँही मुझको चुप रहने की आदत पड़ी पुरानी है
बात बात पे हंस देता हूँ आँखों में तो पानी है
चुन चुन कर के लाया तिनके पिरो पिरो बुनता रिश्ते
अब के मौसम ऐसा लागे दुनिया मेरी लुट जानी है
माँ का आँचल ऐसा छूटा रूठ गयीं मुझसे नींदें
सारा दिन फिर दुनिया-दारी रोज़ी रोटी कमानी है
रुक रुक करके पीछे देखूं आगे की मैं क्या जाऊं
नए साल में कुछ तो होगा, आस वही पुरानी है
शब्दों की इस माला में मेरी कुछ भावों की डोरी है
दर लगता है साथ में मेरे शायद ये जल जानी है
मैं न जाऊं कब डूबेगी मेरे ख्वाबों की कश्ती
गाल हाथ धरे देख रहा हूँ रात बड़ी तूफानी है
Ckh
आप इसे निदा फाजली जी की लिखी " मुह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन .." की धुन गा के देख सकते हैं...बहर में पूरी तरेह से तो नहीं है ...
बात बात पे हंस देता हूँ आँखों में तो पानी है
चुन चुन कर के लाया तिनके पिरो पिरो बुनता रिश्ते
अब के मौसम ऐसा लागे दुनिया मेरी लुट जानी है
माँ का आँचल ऐसा छूटा रूठ गयीं मुझसे नींदें
सारा दिन फिर दुनिया-दारी रोज़ी रोटी कमानी है
रुक रुक करके पीछे देखूं आगे की मैं क्या जाऊं
नए साल में कुछ तो होगा, आस वही पुरानी है
शब्दों की इस माला में मेरी कुछ भावों की डोरी है
दर लगता है साथ में मेरे शायद ये जल जानी है
मैं न जाऊं कब डूबेगी मेरे ख्वाबों की कश्ती
गाल हाथ धरे देख रहा हूँ रात बड़ी तूफानी है
Ckh
आप इसे निदा फाजली जी की लिखी " मुह की बात सुने हर कोई दिल के दर्द को जाने कौन .." की धुन गा के देख सकते हैं...बहर में पूरी तरेह से तो नहीं है ...
Wednesday, December 29, 2010
याद नहीं कुछ याद नहीं
गो धूलि बेला आई कब थी
याद नहीं कुछ याद नहीं
कब जागा था पहली किरण संग
याद नहीं कुछ याद नहीं
अरसा बीता गौरिया संग
मिट्टी से बिनना दाने वाने
बैठ दुपहरी छाँव में तरु की
सुस्ताना चप्पल रख सिरहाने
कब चालीसा गयी थी मन से
याद नहीं कुछ याद नहीं
भोला सा तो था गाँव मेरा
भोले भाले थें लोग सभी
कब ये मौसम ऐसे बिगाड़ा
गैर हुए कब लोग सभी
कब खुल कर थहाके सुने थें
याद नहीं कुछ याद नहीं
याद नहीं कुछ याद नहीं
कब जागा था पहली किरण संग
याद नहीं कुछ याद नहीं
अरसा बीता गौरिया संग
मिट्टी से बिनना दाने वाने
बैठ दुपहरी छाँव में तरु की
सुस्ताना चप्पल रख सिरहाने
कब चालीसा गयी थी मन से
याद नहीं कुछ याद नहीं
भोला सा तो था गाँव मेरा
भोले भाले थें लोग सभी
कब ये मौसम ऐसे बिगाड़ा
गैर हुए कब लोग सभी
कब खुल कर थहाके सुने थें
याद नहीं कुछ याद नहीं
Thursday, December 23, 2010
बात उसके समझ न आई कभी
इक सहरांव था मेरे सीने में
पड़ी बंजर इक पथरीली ज़मीन थी जज्बातों की
और था सैलाब अश्कों का मेरी आँखों में
जो न छलका इक भी अश्क मेरी पलकों से
क्यूँ न समझा वो मेरी मजबूरी ....
न करता वो मुझको समझने की जो गलती
तो शायद
बात समझ उसको आजाती
जुगनू कब ख़ुशी स मुट्ठी में बंद हुआ करते हैं
हाथ फैलाकर कभी आँख बंद करके देखो तो
वो तो अक्सर हथेलियाँ दूंदते हैं सुस्ताने को ...
वो न समझा मेरी मजबूरी
बात उसके समझ न आई कभी
मई तो जुगनू हूँ
अन्धीरे से है पहचान मेरी
वो खामोखां उजाले करता था
का मिला हूँ मैं उजालों में
बात उसको कोई समझाए ज़रा
पड़ी बंजर इक पथरीली ज़मीन थी जज्बातों की
और था सैलाब अश्कों का मेरी आँखों में
जो न छलका इक भी अश्क मेरी पलकों से
क्यूँ न समझा वो मेरी मजबूरी ....
न करता वो मुझको समझने की जो गलती
तो शायद
बात समझ उसको आजाती
जुगनू कब ख़ुशी स मुट्ठी में बंद हुआ करते हैं
हाथ फैलाकर कभी आँख बंद करके देखो तो
वो तो अक्सर हथेलियाँ दूंदते हैं सुस्ताने को ...
वो न समझा मेरी मजबूरी
बात उसके समझ न आई कभी
मई तो जुगनू हूँ
अन्धीरे से है पहचान मेरी
वो खामोखां उजाले करता था
का मिला हूँ मैं उजालों में
बात उसको कोई समझाए ज़रा
Saturday, December 18, 2010
क्यूँ भागूं
इक मीठी सी नींद सुला जा
ऐसी के अब ना जाऊं
जिन सपनों का अर्थ नहीं कुछ
उनके पीछे क्यूँ भागूं
ऐसी के अब ना जाऊं
जिन सपनों का अर्थ नहीं कुछ
उनके पीछे क्यूँ भागूं
Friday, December 17, 2010
इक उम्मीद
मेरी कलम से निकले हर्फ़
तेरे होटों पे जो आयें
इक उम्मीद बंधी दिल में
के शायद अब मैं जी जाऊं
निकलता था कुशाँ से मैं
झुकाकर सर को कुछ ऐसे
के कोई रोककर मुझको
कहीं ये पूछ न बैठे
बताओ नाम क्या और
किधर निकले हो तुम घर से
बड़ी कमजोर तबीयत थी
बड़ा नाजुक था दिल मेरा
मगर कल रात महफ़िल में
जो तुमने गीत मेरे गाये
इक उम्मीद बंधी दिल में
के शायद अब मैं जी जाऊं
तेरे होटों पे जो आयें
इक उम्मीद बंधी दिल में
के शायद अब मैं जी जाऊं
निकलता था कुशाँ से मैं
झुकाकर सर को कुछ ऐसे
के कोई रोककर मुझको
कहीं ये पूछ न बैठे
बताओ नाम क्या और
किधर निकले हो तुम घर से
बड़ी कमजोर तबीयत थी
बड़ा नाजुक था दिल मेरा
मगर कल रात महफ़िल में
जो तुमने गीत मेरे गाये
इक उम्मीद बंधी दिल में
के शायद अब मैं जी जाऊं
Thursday, December 16, 2010
और नया भी क्या होगा
नया साल, पुराने ख़त, तेरी यादें
और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा
वही ठंढी, फिजा बरहम, वही सौतन, अँधेरी रात
और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा
दबी आवाज़ में कहता हूँ
मैं खुद से ही चुप रहने को
मिटा देंगे ये सुनने वाले
और नया भी क्या होगा
दीवाना मैं हूँ ख़्वाबों का
हकीकत में कब रखा कुछ था
वही बातें दुनिया दारी की
वही जिद-ओ-जहद जिन्दा रहने की
और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा
वही ठंढी, फिजा बरहम, वही सौतन, अँधेरी रात
और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा
दबी आवाज़ में कहता हूँ
मैं खुद से ही चुप रहने को
मिटा देंगे ये सुनने वाले
और नया भी क्या होगा
दीवाना मैं हूँ ख़्वाबों का
हकीकत में कब रखा कुछ था
वही बातें दुनिया दारी की
वही जिद-ओ-जहद जिन्दा रहने की
और नया भी क्या होगा
और नया भी क्या होगा
चुभा है शूल सीने में मगर तुम मुस्कराते हो
चुभा है शूल सीने में मगर तुम मुस्कराते हो
बड़े नाजुक हैं ये रिश्ते, इन्हें कैसे निभाते हो
कहो न यार ऐसे भी संजीदा तो नहीं थे तुम
हमी से रोज़ की बातें, हमी से बात छुपाते हो
कहाँ ढूँढूं मैं जाकर के तेरे हिस्से की खुशियाँ अब
मरीज़-ऐ-दिल की हालत भी कहाँ खुलकर बताते हो
पहले दरिया किनारे तुम लिखा करते थे ग़ज़लों को
मगर अब वहां बैठे कागज़ की नावें बहाते हो
कभी तुमने न देखा दर मालिक का लड़कपन में
उम्र गुजरी तो याद आया अब मस्जिद रोज़ जाते हो
बड़े नाजुक हैं ये रिश्ते, इन्हें कैसे निभाते हो
कहो न यार ऐसे भी संजीदा तो नहीं थे तुम
हमी से रोज़ की बातें, हमी से बात छुपाते हो
कहाँ ढूँढूं मैं जाकर के तेरे हिस्से की खुशियाँ अब
मरीज़-ऐ-दिल की हालत भी कहाँ खुलकर बताते हो
पहले दरिया किनारे तुम लिखा करते थे ग़ज़लों को
मगर अब वहां बैठे कागज़ की नावें बहाते हो
कभी तुमने न देखा दर मालिक का लड़कपन में
उम्र गुजरी तो याद आया अब मस्जिद रोज़ जाते हो
Monday, December 13, 2010
कभी कोई नही मेरा, कभी कायनात मेरी है
कभी कोई नही मेरा, कभी कायनात मेरी है
अजब हालत हैं अपने , अलग ही बात मेरी है
अजब है खेल ये यारा दो चार मुहरों का
उधर गर शय कहीं तेरी, इधर फिर मात मेरी है
सुबो से शाम तक मैंने फकत मेहमाँ नवाजी की
करूँ अब खुद से कुछ बातें, ये सारी रात मेरी है
सफीनों को समंदर में है इक दिन समां जाना
यहाँ है आज मेरी बारी, बड़ी खुश बारात मेरी है
सऊबत का असर ऐसा हुआ अंदाज़ पर मेरे
हर शख्स कहे शायर, ग़ज़ल हर बात मेरी है
अजब हालत हैं अपने , अलग ही बात मेरी है
अजब है खेल ये यारा दो चार मुहरों का
उधर गर शय कहीं तेरी, इधर फिर मात मेरी है
सुबो से शाम तक मैंने फकत मेहमाँ नवाजी की
करूँ अब खुद से कुछ बातें, ये सारी रात मेरी है
सफीनों को समंदर में है इक दिन समां जाना
यहाँ है आज मेरी बारी, बड़ी खुश बारात मेरी है
सऊबत का असर ऐसा हुआ अंदाज़ पर मेरे
हर शख्स कहे शायर, ग़ज़ल हर बात मेरी है
Sunday, December 12, 2010
साथ जिनका मिला एक पल के लिए
साथ जिनका मिला एक पल के लिए
दे गए वो निशानियाँ कल के लिए
पास मेरे है तू आज है ye यकीन
ae खुदा शुक्रिया हर कँवल के लिए
यूँ तो तैयार है ताज ख़्वाबों की ईंट पर
मुमताज चाहिए बस इस महल के लिए
हमको कब थी खबर आप यूँ याद आयेंगे
आपका शुक्रिया इस गज़ल के लिए
दे गए वो निशानियाँ कल के लिए
पास मेरे है तू आज है ye यकीन
ae खुदा शुक्रिया हर कँवल के लिए
यूँ तो तैयार है ताज ख़्वाबों की ईंट पर
मुमताज चाहिए बस इस महल के लिए
हमको कब थी खबर आप यूँ याद आयेंगे
आपका शुक्रिया इस गज़ल के लिए
आज की रात
लिख चल दिल की बात
खुल कर मेरे यार
आज की रात
क्यूँ न खो जाऊं कहीं
श्याही संग
बन कर जज़्बात
आज की रात
ऐसे तो मुझको nahi
होता कभी
आज हुआ जाने क्यूँ
ढल जा शब्दों में
बन कर कोई बात
आज की रात
कलि कलि गाये तेरा
गीत नया
मुस्का कर यार
ले आ
भावों की बारात
आज की रात
खुल कर मेरे यार
आज की रात
क्यूँ न खो जाऊं कहीं
श्याही संग
बन कर जज़्बात
आज की रात
ऐसे तो मुझको nahi
होता कभी
आज हुआ जाने क्यूँ
ढल जा शब्दों में
बन कर कोई बात
आज की रात
कलि कलि गाये तेरा
गीत नया
मुस्का कर यार
ले आ
भावों की बारात
आज की रात
Friday, December 10, 2010
भोले लोग
मारो!मारो! नहीं तो काट लेगा
अरे वो सांप है!
जहरीला है काट लेगा!
पताक! चटाक ! धाड़ धुम !
और यूँ
मारा गया एक और सांप...
मेरे शहर के लोगों को
जहर से सख्त नफरत है
और जहरीले जीवों को
फूटी आँख नहीं देखते ये समझदार लोग
बजबजाती भिनभिनाती
गन्दी नालियां
सरकार साफ नहीं करतीं
वरना इस शहर में तो गन्दगी का नामों निशाँ न होता
वो तो ठेकेदार चोर था
और नेता बिमान
वरना सूरत ही कुछ और होती इस शहर की
अरे वो सांप है!
जहरीला है काट लेगा!
पताक! चटाक ! धाड़ धुम !
और यूँ
मारा गया एक और सांप...
मेरे शहर के लोगों को
जहर से सख्त नफरत है
और जहरीले जीवों को
फूटी आँख नहीं देखते ये समझदार लोग
बजबजाती भिनभिनाती
गन्दी नालियां
सरकार साफ नहीं करतीं
वरना इस शहर में तो गन्दगी का नामों निशाँ न होता
वो तो ठेकेदार चोर था
और नेता बिमान
वरना सूरत ही कुछ और होती इस शहर की
Monday, December 6, 2010
आज मुझे कुछ याद आई
इक छुई मुई सी नज़्म लिखी
और लिख मैं भूल गया
आज मुझे कुछ याद आई
आज मुझे कुछ याद आई
कुछ था जीवन पर शायद
या प्रेम की थीं कुछ बातें
आंचन रेशम की साडी का
हर डोर जीवन के नाते
आज मुझे कुछ याद आई
डर था उसको गली में बैठे
कुछ आवारा लड़कों का
उसके घर तक जाती वो
सुनसान अँधेरी सडकों का
आज मुझे कुछ याद आई
पैदल पैदल धीरे धीरे
चुप-चाप चली वो जाती थी
कुछ कम कम होने का मुझको
अहसास पल पल कराती थी
आज मुझे कुछ याद आई
और लिख मैं भूल गया
आज मुझे कुछ याद आई
आज मुझे कुछ याद आई
कुछ था जीवन पर शायद
या प्रेम की थीं कुछ बातें
आंचन रेशम की साडी का
हर डोर जीवन के नाते
आज मुझे कुछ याद आई
डर था उसको गली में बैठे
कुछ आवारा लड़कों का
उसके घर तक जाती वो
सुनसान अँधेरी सडकों का
आज मुझे कुछ याद आई
पैदल पैदल धीरे धीरे
चुप-चाप चली वो जाती थी
कुछ कम कम होने का मुझको
अहसास पल पल कराती थी
आज मुझे कुछ याद आई
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नही
उन पे रोना, आँहें भरना, अपनी फ़ितरत ही नहीं… याद करके, टूट जाने, सी तबीयत ही नहीं रोग सा, भर के नसों में, फिल्मी गानों का नशा ख़ुद के हा...
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(Note: Though I am not good at Urdu, its not my mother tounge, but I have made an attempt to translate it. I hope this will convey the gist...
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(Ram V. Sir's explanation) vAsudhEvEndhra yogIndhram nathvA gnApradham gurum | mumukshUNAm hithArThAya thathvaboDhaH aBiDhIyathE || ...
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(One of the four topics for essay from UPSC paper 2012) Sharaabiyon ko akeedat hai tumse, jo tu pilade to paani sharaab ho jaaye Jis...