Wednesday, December 29, 2010

याद नहीं कुछ याद नहीं

गो धूलि बेला आई कब थी
याद नहीं कुछ याद नहीं
कब जागा था पहली किरण संग
याद नहीं कुछ याद नहीं

अरसा बीता गौरिया संग
मिट्टी से बिनना दाने वाने
बैठ दुपहरी छाँव में तरु की
सुस्ताना चप्पल रख सिरहाने
कब चालीसा गयी थी मन से
याद नहीं कुछ याद नहीं

भोला सा तो था गाँव मेरा
भोले भाले थें लोग सभी
कब ये मौसम ऐसे बिगाड़ा
गैर हुए कब लोग सभी
कब खुल कर थहाके सुने थें
याद नहीं कुछ याद नहीं

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति... मन को छू गई आपकी कविता...

संजय भास्‍कर said...

आपको और आपके परिवार को मेरी और से नव वर्ष की बहुत शुभकामनाये ......

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